Book Title: Baldiksha Vivechan
Author(s): Indrachandra Shastri
Publisher: Champalal Banthiya

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Page 46
________________ ( ४० ) सकता। जिस व्यक्तिकी प्रतिज्ञाओंपर गुरु तथा संघको पूरा विश्वास नहीं हो सकता, जैसा कि वालकके विषयमें स्वाभाविक है, उसे दीक्षा देना कानून तथा शास्त्र दोनोंसे विरुद्ध है। पुगनी कथाओंमें आए हुए दो-चार महापुरुषोंका उदाहरण देकर साधारण नियम बनान उचित नहीं कहा जा सकता। बालिग होनेपर व्यक्ति अपने हितोके लिये स्वयं जिम्मेवार होता है। नाबालिग अवस्थामें जिस व्यक्तिके हित यदि किसी सामाजिक अथवा धार्मिक प्रथा द्वारा कुचले जाते हों तो उनकी रक्षा करना राज्यका कर्तव्य है। इसलिये नाबालिगोंके हितोंकी रक्षाके लिये कानून अवश्य बनना चाहिये। दूमरी बात यह है कि योग्यता और अयोग्यताका निर्णय सर्वसाधारण द्वारा नहीं हो सकता। उस हालतमें कानून बन जाने पर भी गड़बड़ पड़ सकती है। जिस प्रकार शास्त्रों में योग्यताका निर्णय होने पर भी उसकी परवाह नहीं की जाती, उसी प्रकार कानून बन जाने पर भी योग्यता की आड़में वही बात चल सकती है। उम्रका निश्चय हो जाने पर अयोग्य व्यक्तियोंकी एक श्रेणीका तो बचाव हो ही जाएगा। (ग) नियमोंका पहलेसे होना-किसी भी संप्रदायमें नाबालिगको दीक्षा देने की मनाही नहीं है। यदि मान लिया जाय कि किसी सम्प्रदायमें इस प्रकारकी मनाही है तो:कानून बननेपर उसमें कोई बाधा नहीं पड़ती। अयोग्य व्यक्तिको दीक्षा देनेकी मनाही 'शाखोंमें अवश्य है किन्तु उस पर ध्यान नहीं दिया जाता । शास्त्रोंकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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