Book Title: Baldiksha Vivechan
Author(s): Indrachandra Shastri
Publisher: Champalal Banthiya

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Page 48
________________ ( ४२ ) होने पर अपना जीवन त्यागवृत्तिसे विताता है और योग्य अवस्था होने पर दीक्षा ले लेता है ता उसे कोई नहीं रोकता । ऐसा साधु तो आदर्श साधु बनता है। प्रायः ऐसा होता है कि क्षणिक जोशमें आकर बालक साधु बन जाते हैं और बड़े होने पर पछताते हैं । क्षणिक जोशमें आकर बालक जीवन भरके लिये किसी प्रतिज्ञामें न फँसें, यही कानूनकी मंशा है। विरोधी पक्षकी दलीलों पर विचार पूर्व पक्षकी दलीलें धर्मशास्त्र तथा धर्मकी इस प्रकार मनाही होने पर भी बहुतसे साधु-वेषधारी चेलोंके लोभसे छोटे-छोटे बच्चोंको मंड लेते हैं। वे दलीलें देते हैं (क) जैन शास्त्रोंमें आठ वर्षसे कुछ अधिक उम्र वाले बालकको दोक्षा देनेकी अनुमति है। इस लिये ६-१० वर्षके बालकको दीक्षा देने में किसी प्रकारका शाखनिरोध नहीं होता। (ख) भगवान महावीरने स्वयं अतिमुक्त कुमारको बाल्यावस्था में दीक्षा दी थी। इसी प्रकार वनस्वामी आदि कई दूमरे मुनि भी ऐसे हुए हैं जिन्होंने बचपनमें दीक्षा लेकर धर्मका उद्धार किया है। (ग) धर्मके असली संस्कार बाल्यावस्थामें ही बैठाये जा सकते हैं। सांसारिक वासनामोंसे चित्तके दूषित होनेपर वह निर्मलता नहीं मा सकती। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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