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( ३० ) स्थितिवाली करता है, जो मन्द फल देने वाली हैं उन्हें तीव्र फल वाली करता है, जो अल्प प्रदेश वाली हैं उन्हें अधिक प्रदेश वाली करता है।"
इसी प्रकार निशीथ सूत्रके ग्यारहवें उद्देशमें कहा है
“जे भिक्खू णायगं व अणायगं वा उपासगं वा अणुवासगं वा जे अणलं पवावेइ पवावंतं वा साइजइ । जि भिक्खू अणलं उट्ठवेइ, उट्ठावंतं वा साइजइ। जे भिक्ख अणलेणं वेयावच्चं करेइ करेतं वा साइजइ । ते सेवमाणे आवजइ चउमासियं परिहारट्ठाण अणुग्घाइमं।"
अर्थात् चो भिक्खु नायक अथवा अनायक, उपासक अथवा अनुपामक किसी भी प्रकारके अयोग्य व्यक्तिको दीक्षा देता है अथवा ऐसे व्यक्तिको दीक्षा देनेवालेकी सहायता करता है। अयोग्य व्यक्ति को उठाता है अथवा उठानेवालेकी सहायता करता है। अयोग्य व्यक्तिसे अपनी सेवा कराता है अथवा सेवा करने वालेको सहायता करता है। ऐसे भिक्खुको अनुद्धातिम चातुर्मासिक प्रायश्चित्त बाता है।
इस प्रकार शास्त्रमें अनेक स्थानों पर अयोग्य-दीक्षाका निषेध किया गया है।
ऊपर लिखे प्रमाणोंसे यह स्पष्ट हो जाता है कि अयोग्य व्यक्ति को दीक्षा या संन्यास देनेकी किसी भी धर्म में आज्ञा नहीं है। संसारका कोई भी धर्म इस बात को नहीं सह सकता कि एक अयोग्य बालक उनका धर्मगुरु बन कर धार्मिक स्तरको नीचे गिरावे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com