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( ३२ ) २-वर्तमान साधु चमकीले तथा भड़कदार कपड़े पहिनते हैं। सरदीके लिए उनके पास सौ-सौ और डेढ़-डेढ़ सौ रुपये कीमतवाले ऊनी व रेशमी कपड़े होते हैं और गरमीमें ऐसी बारीक मलमल पहिनते हैं जिसमें शरीरका प्रत्येक अंग दिखाई दे ।
३-पुराने समयके साधु केवल एक बार रूखा सूखा भोजन करते थे। आजकल घी, दूध, मलाई तथा शरीरको पुष्ट करनेके लिये चन्द्रोदय, मकरध्वज, मौक्तिक भस्म आदिका प्रतिदिन सेवन करते हैं। प्रत्येक ऋतुके फल, (अचित किये हुए' ) मेवे तथा मिठाइयां खाते हैं। सैकड़ों डाकर और वैद्योंकी आजीविकाएं इन्हीं साधुओंके सिर पर चलती हैं। _____एक तरफ जिह्वा तथा दूसरी इन्द्रियोंकी तृप्तिके लिये शास्त्र विहित मर्यादाको ताकमें रख देना, दूसरी ओर बालक और अयोग्य व्यक्तियोंको भरती करते जाना, साधु समाजके महान् पतनकी सूचना देता है।
राष्ट्र, समाज, धर्म तथा व्यक्ति सभीके लिये बाल-दीक्षा किसा प्रकार हानिकारक बनो हुई है, हम उसे संक्षेपमें बता देना चाहते हैं ।।
१ इस अचित्त करनेका ढंग भी बड़ा विचित्र है। हल्के गर्म पानीमें ' जरासा डुबाकर निकाल लेना जिसमें स्वाद न बिगड़े अचित्त होगालवता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com