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सामाजिक दृष्टि (१) प्रायः ऐसे साधु हिन्दूसमाजकी अन्ध श्रद्धा पर पलते हैं। भोली बहिनें तथा भाई उनकी पूजा करते हैं। वास्तविकताका निर्णय बिना किए वे साधुका वेष पहिने हुए प्रत्येक व्यक्तिपर विश्वास करने लगते हैं। इस विश्वाससे लाभ उठाकर साधु वेषधारी गुण्डे औरतों का व्यापार करते हैं। हिन्दू समाजकी महिलाएं भगाई जाती हैं और उन्हें इधर उधर बेचा जाता है।
(२) बड़े बड़े तीर्थस्थानोंको ऐसे साधुओंने व्यभिचार और दुराचारका घर बना रखा है।
(३) उनके चंगुलमें फँसनेके बाद बहुतसे बालक तथा बालिकाओंका जीवन बरबाद हो जाता है।
(४) हिन्दूसमाजका नैतिक जीवन ऐसे साधु खोखला बना
(५) गन्दी गन्दी बीमारियोंको फैलानेके लिये ऐसे भिखमंगे कीटाणुओंका काम करते हैं। (६) हिन्दुसमाजकी दरिद्रताका ये प्रधान कारण बने हुए हैं।
धार्मिक दृष्टि
(१) वेद,गीता, रामायण और महाभारतका आदर्श रखनेवाला हिन्दूधर्म माज केवल ढोंग और ढकोसला रह गया है। इसका
कारण केवल ढोंगी साधु हैं।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com