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अयोग्य दीक्षाके लिए शास्त्रीय निषेध अयोग्य व्यक्तिको दीक्षा देना मूल सूत्रोंमें निषिद्ध है। भगवती सुत्र शतक १ उद्देश १ में आया है
"असंबुडेणं भंते अनगारे सिझई बुज्झइ मुजइ परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणमन्ते करेइ ?"
गोयमा ! णो इणढे समझे। से केणटेण भंते जाव अंतं न करेइ !
गोयमा असंबुन्झे अणगारे आयु अवजाओ सत्तवम्भ पयडीओ सिढिल बन्धन बंधाओ घणीय बंधण बंधाओ पकरेइं, रहस्सकाल ठिइमामो दीहकाल ठिइआमओ पकरेइ, मंदाणुभावाओ तिव्वाणुभावामो पकरेइ, अप्प पएसगाओ बहुपएसगामो पकरेइ ।
भावार्थ-गौतम स्वामी भगवान् महावीरसे पछते हैं
हे भगवन् ! जो साधु पाप कर्मसे निवृत्त नहीं हुआ है, क्या वह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो सकता है, निर्वाण प्राप्त कर सकता है तथा सब दुःखोंका अन्त कर सकता है ? 'नहीं गौतम ! यह नहीं हो सकता' भगवान्ने उत्तर दिया।
क्यों भगवन् ! ऐसा साधु सिद्ध बुद्ध मुक्त आदि क्यों नहीं हो सकता ? गौतम स्वामीने फिर पछा।
हे गौतम ! असंवृत (असंयतेन्द्रिय) मनगार आयुकर्मको छोड़कर शेष सात कर्मों को प्रकृतियां जो शिथिल बन्ध वाली हैं उन्हें दृढ बन्ध वाली करता है, जो थोड़े कालकी स्थिति वाली हैं उन्हें लम्बे कालकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com