Book Title: Baldiksha Vivechan
Author(s): Indrachandra Shastri
Publisher: Champalal Banthiya
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( २५ ) मूण्ड मूण्डावो मेलो कीघो, त्यांस्युं पले नहीं आचारजी। भूख तृषा खमणी नां आवे, जब लेवे अशुद्ध आहारजी ।।
साध म० ॥ ५५ ॥ ढाल ६ अजोग ने दीक्षा दोध्यां ते, चारित्र रा हूवे खंडजी । नशीथ रो उद्देशो इग्यारमो, चोमासी रो डंडजी ।।
साध म० ।। ५६ ।। , विवेक विकल बालक बूढ़ाने, पहरावे सांग सताब जी। त्यां ने जीवादिक पदार्थ नव रा, जाबक नां आवे जाब जी ।।
साध म० ॥५॥ , शिष करणो तो निपुण बुध वालो, जीवादिक जाणे तायजी । नहीं तो एकलो रहणों टोलामें, उताराध्येन बत्तीस मां मांयजी
साध म०॥५८ ।। " जीवादिक जाणे नहीं तेहने, पांचूंई महाव्रत उचरावे रे। साधु रो सांग पहिरायने, भोला लोकांने पगां लगावे रे ।।
इणविध ओलखो नवकड़ा ।। २२ ।। ढाल ११ बालक बूढो देखे नहीं, थारे पाने पड़े ज्यं ज्यु मृण्डे रे। नामना करवा आपरि, ते तो मान बड़ाई स्यु बूडे रे ॥
इण० ।। २३ ।। , चेला चेली करणे ग लोभिया रे, एकान्त मत बांधण रे काम रे । बिकलां ने मंड र भेला किया रे, दराय गृहस्थ ने रोकड़ा दामरे ।।
पाखंड बघसी आरे पंचमे रे ॥११॥ ढाल ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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