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दीक्षा और मूल आगम मूल आगमों में भी कई स्थानों पर बड़ी उम्र वालेको दीक्षा देने को कहा है। थोड़े उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं
आचारांग सूत्रके अध्ययन ८ उद्देश ३ गाथा १ में लिखा है___मझिमेणं वयसा एगे संबुझमाणा समुट्ठिता ।
(युवा, प्रौढ़ तथा वृद्ध इन तीनोंमें ) मध्यम अर्थात् प्रौढ़ अवस्था वाला बुद्धि परिपक्क होनेके कारण दीक्षाके विशेष योग्य होता है । __ठाणांग सूत्रके दसवें ठाणेमें दस प्रकार के मुण्ड बताये गये हैंकान, नाक, आँख, जीभ और स्पर्शन इन पाँच इन्द्रियोंसे मुण्डित अर्थात् इनके विषयोंको जीतने वाला; क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायोंसे मुण्डित अर्थात् इन कषायोंको नष्ट कर देने वाला;.
और दसवाँ शिगेमुण्ड अर्थात् लोच करके सिरको मुण्डाने वाला। इसका अर्थ यही है कि क्रमशः नौ बातोंमें मुण्डित हो जाने पर फिर सिर मुण्डाना चाहिये। . . .
दशवकालिक सूत्रके दसवें ‘स भिक्खु' नामक अध्ययनमें साधु का स्वरूप इस प्रकार बताया गया हैजो सहइ हु गाम कंटय, अकोस पहार तज्जणाओ। भय मेग्व सद्द सप्पहासे, सम सुह दुक्ख सहे. जे स भिक्ख ।।
भावार्थ--जो व्यक्ति ग्राम कंटक अर्थात अपरिचित गांवमें जाने पर होने वाले सभी कष्टोंको सहता है। जहाँ कुचे विचित्र रूप देख कर काटनेको दौड़ते हैं, गांवके बालक इकट्ठे होकर पीछे लग जाते हैं और गालियाँ देने तथा पत्थर फेंकने लगते हैं, भिक्षाके लिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com