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( १४ ) खियों और बच्चोंको भगाना, चोरी करना, बुरे बुरे रोग फैलाना तथा हिन्दू समाजकी जड़को खोदना ही उन लोगोंका कार्य है । भारतवर्षमें इनकी संख्या सत्तर लाख है, जो मेहनत मजदूरी करना पसन्द नहीं करते। जो हिन्दू समाजकी पवित्रताका अभिशाप बने हुए हैं और जिनके भरण पोषणका भार उठाकर हिन्दू समाज दिन प्रतिदिन दरिद्र होता जा रहा है। जो प्लेगके चहोंकी तरह जिस समाजमें पलते हैं, उसीका सत्यानाश कर रहे हैं।
हिन्दू समाजमें ऐसा कोई भी संगठन नहीं है, जो इस साकार प्लेगका प्रतीकार कर सके। राज्यशक्तिके बिना इसका प्रतीकार असंभवसा है।
जैन धर्म जैनधर्म में संन्यासको दीक्षा या माईती दीक्षा कहते हैं। इसमें मुख्य दो सम्प्रदाय हैं-श्वेताम्बर और दिगम्बर । दिगम्बर साधु बहुत थोड़े हैं, वे बिल्कुल नग्न रहते हैं, तथा कठोर चर्याका पालन करते हैं। इनमें श्रावकके व्रतोंसे प्रारम्भ करके उत्तरोत्तर कठोर चर्याका पालन करते हुए इने गिने व्यक्ति मुनि बनते हैं। समस्त भारतवर्षमें दिगम्बर मुनियोंकी संख्या १५ से अधिक नहीं है। किसी बालकके लिये दिगम्बर मुनि क्षेना असंभव सा है। मारवाड़में दिगम्बर मुनियोंका मभाव सा है। . .' श्वेताम्बरों में तीन फिरके है-मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और तेरापंथी। श्वेताम्बर साधु वसधारी होते है। रहते हैं।
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