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इसी प्रकार अचौर्य तथा ब्रह्मचर्य व्रतोंके लिए भी है । मनमें किसी प्रकारके बुरे विचार आना अब्रह्मचर्य है। इसके लिए जिह्वा स्वाद पर नियंत्रण तथा वातावरणका पवित्र रहना अत्यन्त आवश्यक है।
अपरिग्रह महाव्रत तो सबसे कठिन है। धर्माराधनके लिए आवश्यक वस्तुओंके सिवाय अपने पास कुछ न रखना एवं वस्त्र, पात्र, शिष्य तथा अपने शरीर पर भी ममत्व न रखना अपरिग्रह व्रत है। ___ इनके सिवाय साधुओंके लिए पाँच समिति तथा तीन गुप्तिका विधान है। भोजनके लिए ४७ दोषोंका टालना आवश्यक है । यदि साधु अपने लिए बना हुआ भोजन लेता है, इतना लेता है कि उसके बाद दाताको अपनी आवश्यकताके लिए फिर बनाना पड़े, मीठे तथा रसीले और रूखे सूखे भोजनमें किसी प्रकारकी भेद बुद्धि रखता है तो ये सब आहारके दोष हैं। ___इनके सिवाय बाईस परिषह बताए गए हैं जिन्हें साधुको सहना चाहिए। उनमें शीत, उष्ण, क्षुधा, तृषा, दंश, मशक निंदा आदि इतने कठोर हैं कि साधारण व्यक्ति नहीं सह सकता। पैदल बिहार सरदी तथा गरमीमें न जूते पहिनना न पगड़ी या छाता आदि रखना, केश लोच, पासमें एक भी पैसा न रखना, कड़कड़ाती सरदीमें भी तीन चद्दरोंसे अधिक वस्तु न रखना, अपना सारा सामान उठा कर चलना आदि और भी कठोर चर्याएं हैं। जिसने संसारके सभी अनुभव ले रखे हैं, ऐसा कोई-कोई व्यक्ति ही योग्य हो सकता है। आजकलके भोले बालक तो इसका स्वरूप भी नहीं समझ
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