Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 14
________________ अपभ्रंश भारती 15-16 सबसे महत्त्वपूर्ण प्रसंग यह है कि लक्ष्मण की मृत्यु हो जाने पर राम लक्ष्मण के शव को अपने कन्धे पर डालकर घूमते रहते हैं।' इससे बढ़कर राम का स्नेह क्या हो सकता है? यह विचार सभी जैन राम - कथाओं में मिलता है, किन्तु जैनैतर कथाओं में नहीं मिलता जो भ्रातृत्व प्रेम के रूप में राम के व्यक्तित्व को निखारता है। 3 पत्नी के प्रति भी राम के व्यक्तित्व में अपनी आदर्श मर्यादा और असीम प्रेम के साथ लोकापवाद के कारण नफरत या हेय भावना भी दिखाई देती है। जब रावण सीता का हरणकर ले जाता है तब राम सीता की प्राप्ति के लिए करुण - क्रन्दन करते हैं - 'अरे! मेरी कामिनी के समान सुन्दर गतिवाले गज क्या तुमने मेरी मृगनयनी को देखा है ? ' " रामचरित्र मानस के राम भी इसी तरह पूछते हुए व्याकुल हैं - हे खगमृग ! हे मधुर श्रेणी! तुम देखी सीता मृगनैनी ? सीता के प्रति अगाध प्रेम का एक प्रसंग और है । लक्ष्मण के पूछने पर राम के मुँह से केवल इतना निकलता है सीता वन में नष्ट हो गई है। उसकी वार्ता और कोई नहीं जानता । " मर्यादा रक्षक सीता के लिए किये गये राम के करुण - क्रन्दन में जहाँ प्रेम है वहाँ दूसरी तरफ सीता- निर्वासन और अग्नि परीक्षा के प्रसंग में कठोरता, आदर्शवादिता, नैतिकता एवं मर्यादा आदि गुण उनके व्यक्तित्व में श्रेष्ठता लाते हैं । - राम निष्ठुर बनकर सीता को राजभवन से निर्वासित कर भयंकर जंगल में छुड़वा देते हैं। इसलिये कि अयोध्या की कुछ स्त्रियों ने अपने पति के सामने यह तर्क प्रस्तुत किया कि यदि इतने दिनों तक रावण के यहाँ रहकर आनेवाली सीता राम को ग्राह्य हो सकती है तो एक - दो रात अन्यत्र बिताकर घर लौटने में पतियों को आपत्ति क्यों हो?" इस बात को लेकर नगर में सीता विषयक अपवाद फैलता है। राम मर्यादा की रक्षा लिए सीता का निर्वासन कर देते हैं। राम का चरित्र और अधिक उजागर तब होता है जब उनका मन दूषित हो जाता है। राम के मानस पटल पर अन्तर्द्वन्द्व की रेखाएँ उभर आती हैं वे सोचते हैं - वे बड़ी कठिनाई में हैं। यदि सीता सती भी हो तो इस लाँछन को कौन टाल सकता है कि वह रावण के घर रहकर आयी है !" फिर भी राम दृढ़तापूर्वक लक्ष्मण को कहते हैं- नहीं, नहीं! सीता को नहीं रख सकते, चाहे तुम कितना ही प्रतिवाद करो । राम के व्यक्तित्व में अन्तर्द्वन्द्व एवं दृढ़ता स्वयंभू की मौलिक देन है जो मानस एवं रामायण के राम में नहीं मिलते हैं।

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