Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 33
________________ अपभ्रंश भारती 15-16 नागकुमार ने ऊर्जयन्त पर्वत से गिरिनगर की युद्ध-यात्रा की थी। पुनः वहाँ से चलकर उसने गजपुर और अलंघनगर को अपने अधीन किया था। उसके बाद वह मेघपुर, दन्तीपुर आदि देशों की यात्रा पर गया था। इन सभी देशों का महाकवि पुष्पदन्त ने भौगोलिक वर्णन नहीं किया है। इनका केवल कथाक्रम में कथावस्तु के विस्तार की दृष्टि से उल्लेख हुआ है। नागकुमार की युद्धयात्रा के क्रम में पाण्ड्य देश, उज्जयिनी आदि अन्य कई देशों की भी चर्चा महाकवि ने की है, किन्तु वहाँ के स्थानगत वैशिष्टय की कोई भी बात नहीं है। उज्जयिनी के विशेषण में महाकवि ने केवल इतना ही लिखा है कि वह नगरी निरन्तर सैकड़ों सुखों की श्रेणीभूत है णिवसंतें संतें संतयाहँ, उज्जेणिहिं सेणिहिं सुहसयाहँ। 8.7॥ - किष्किन्ध-मलय प्रदेश के मेघपुर नगर के प्रतापी राजा मेघवाहन इन्द्र का ही प्रतिरूप था। उसकी पुत्री तिलकासुन्दरी रति के समान रूपवती और नृत्यकला-कुशला थी। उसकी प्रतिज्ञा थी कि जो श्रेष्ठ पुरुष उसके नृत्य करते समय उसकी पदगति को समझकर तदनुकूल मृदंग बजा सकेगा वही उसका पति होगा। नागकुमार ने राजकुमारी के नृत्य में उसकी पदचाप से मिलाकर मृदंग पर थाप लगाई। राजकुमारी ने नागकुमार के रूप-गुण पर मुग्ध होकर उसे अपना पति मान लिया। विवाह होने पर दोनों की जोड़ी सीता और राम जैसी प्रतीत हुई। इस प्रसंग को महाकवि की ललित काव्य-भाषा में देखें पयचलणमिलिउ वाइउ मुयंगु, जोइउ वलेवि मुद्धइँ अणंगु। तो दिण्ण कण्ण जाइउ विवाहु, सिरिसंगें णं तुट्ठउ विवाहु। थिउ रामइँ सहुँ रामहिरामु, णावइ सीयइँ सहुँ देउ रामु।। 8.8॥ महाकवि पुष्पदन्त ने देश-दर्शन के क्रम में तोयावलि द्वीप का भी वर्णन किया है, जो पूर्णत: मायानगर के समान था। ऊर्जयन्त तीर्थ की वन्दना के समान ही नागकुमार ने तोयावलि द्वीप में भी जिन-वन्दना की थी। वह गुणरूपी रत्नों के निधान तथा संसार-कानन को दग्ध करनेवाले अग्निदेव के समान थे (8.10)। ___णायकुमारचरिउ' भोगौलिक और राजनीतिक इतिहास का उल्लेखनीय ग्रन्थ है। इसके रचयिता महाकवि पुष्पदन्त ने कथा के ब्याज से भौगोलिक और राजनीतिक इतिहास के अनेक तथ्यों को उपन्यस्त किया है। पुष्पदन्त द्वारा वर्णित देश, क्षेत्र, नगर, ग्राम आदि के वर्णनों से तत्कालीन भौगोलिक अवस्थिति का ज्ञान तो होता ही है, राजनीतिक परिस्थिति का भी पता चलता है। काव्यकार द्वारा यथा-प्रस्तुत वर्णन में तत्कालीन मगध जनपद की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विशेषताओं की सूचना उपलब्ध होती है। ‘णायकुमारचरिउ' की

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