Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 53
________________ 42 . अपभ्रंश भारती 15-16 रास' शब्द का उद्भव कब हुआ और इसका सबसे प्राचीनतम उल्लेख किस ग्रन्थ में हुआ है, इसका उत्तर देना बड़ा कठिन है। बाण के हर्षचरित' में रासक पदों का उल्लेख हुआ है अश्लील रासक पदानि गायन्त्यः॥ हर्ष के जन्म के समय स्त्रियों द्वारा अश्लील रासक-पदों का गायन हुआ था। इन अश्लील पदों को सुनकर विट ऐसे प्रसन्न हो रहे थे मानो उनके कानों में अमृत चुवाया जारहा हो। इस कथन से यह कहा जा सकता है कि ये रासक-पद अश्लीलता की सीमा तक पहुँचे हुए शृंगार-रसपरक होते थे। सम्भव है, कुछ ऐसे भी रासक पद हों जो अश्लील न हों, किन्तु ये गेय अवश्य थे इसमें सन्देह नहीं। ‘हर्ष' में 'रासक' को 'मण्डली-नृत्य' के अर्थ में भी ग्रहण किया गया है। हर्ष के जन्म के समय रास-मण्डलियाँ घूम-घूमकर नृत्य करती चल रही थीं। उनके घूमने के समय ऐसा लग रहा था मानो आवत-समूह घूम रहा हो- . सावर्त इव रासक मण्डलैः॥' 'हरिवंश पुराण' में "हल्लीसक क्रीड़ा' का उल्लेख ‘मण्डल-नृत्य' के रूप में हुआ है। शरद् ऋतु की शुभ्र ज्योत्स्ना को देखकर कृष्ण के हृदय में 'हल्लीसक नृत्य' करने की इच्छा जगती है और इस प्रकर गोपियों के साथ वे विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हैं तास्तु पंक्तीकृताः सर्वा रमयन्ति मनोरमम्। गायन्त्यः कृष्णचरितं द्वन्द्वशो गोप कन्यकाः। एवं स कृष्णो गोपीनां चक्रवालैरलंकृतः। शारदीषु स चन्द्रासु निशासु भुभुदे सुखी॥ इसी क्रीड़ा को 'हल्लीसक' कहते हैं क्योंकि हल्लीसक में भी मण्डली नृत्य होता है। 'रास' के लिए 'हल्लीसक' शब्द का प्रयोग अन्य किसी भी पुराण-ग्रन्थ में प्राप्त नहीं होता। वात्स्यायन के 'कामसूत्र' में इसका उल्लेख अवश्य मिलता है। कामसूत्र में 'हल्लीसक' के साथ-साथ ‘रासक' शब्द भी प्रयुक्त है हल्लीसक क्रीडनकैर्गायनैयनैर्लाटरासकैः। रागलोलार्द्र नयनैश्चन्द्रमण्डल वीक्षणैः॥ इसकी टीका यों दी गई है "हल्लीसक क्रीडनकैरिति। हल्लीसक क्रीडनं येषु गीतेषु।"

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