Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ 82 5. 10. 5. अपभ्रंश भारती 15-16 घत्ता (1.8) एत्थन्तरि कलगुण पत्त धरु धणुवेय गेय लक्खण पवरु । गुरु पासहो आइउ णिय भवणि हरिसेणें दिट्ठ ताम जणणि । उम्मुक्क कडय णिब्भूसणिय पेक्खेवि माइ विवणम्मणिय । सिरु लाइव चलणिहि ताहि ट्ठिउ कहि परिहउ तउ कि' अंबि किउ । को जलणि जलंत नरु चडिउ को अज्जु कयंतहो मुहि पडिउ । किं विसहर वयणिहि छुछु करु अवलोइउ कालें को वि नरु । कहि वाहि दवत्ति महियइ धरि फेडेमि माइ जे तुज्झु अरि । मासु विणि भुअदंडयरा महु माणुस मित्ते कवणधरा । घत्ता - पहरंतवि अइवलवंतवि रणि जमरायहो दरिसमि पंत्थू । हयले भुअणे महीयलि को तउ परिहउ करण समत्थू ॥8॥ (1.9) विद्दाणिय नलिणि व विणु जलेण आसासिय पुत्त वयणज्जलेण । मणि हरिस विसाउ समुव्वहइ हरिसेणहो वत्त माय कहइ । नवि महुयर परिहउ नविय अरि परिहविय पुत्त हउ तउ पियरि । इत्तउड कालु अविच्छिन्न पहु महु पढमु भवंतउ आसि रहु । इव्वहि पुणु भग्गउ महु पसरु सकामिउ लच्छिहि तेण वरु । किउ णिच्छउ महिमहि कज्जि मइं नवि हउं लज्जावमि पुत्त पई । तउ वयणे निसुणि काइ करमि किं तल पीयालि पइसरमि । अहि तोडिवि जिम मुणाल दलमि किं सेसहो फण कडप्पु मलमि। किं मेरु महागिरि उद्धरमि किं धरणि ससायर वसि करमि । किं निवडइ गरलु भुअंगमहो खउ आणमि थावर जंगमहो । वुल्लिज्जइ जं नउ किज्जइ अलिउ न भासमि पयडउ वुत्तु । जइ न भमइ' महु रह अग्गड़ तो हउं अणसणि मरमि णित्तु ॥9॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112