Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 111
________________ 100 अपभ्रंश भारती 15-16 अगिनिभूति बीजा नाम, वायुभूति त्रीजौ गुणनाम। गणघर पद हुवा गुणवंत, ज्ञानरिद्धि पाम्या जयवंत ॥19॥ लब्धि विधान कीयौ इन्हं चंग, गणघर पद पाम्या उत्तंग। मुगति गामि हुवा गुणवंत, सीद्धपद पाम्या उत्तम ।।20। ते पद देउ स्वामी मझसार, जिणवर गणधर मुगति दातार। मुनिवर स्वामी कृपा करो देव, ब्रह्म जिणदास कहें करू सैव॥21॥ ॥वस्तु॥ श्री वीर जीणवर वीर जीणवर, पांय प्रणमेसुं। गणधर मुनिवर नमस करूं, सरसति स्वामिणि हृदय आंणी। तम्ह परसादें निरमलौ, रास कीयौ मे मधुरी वाणी।। श्रीसकलकीरति पाय प्रणमीने मुनि भुवनकीरति भवतार। ब्रह्म जिणदास कहे निर्मलो, तम्ह गुण देउं भवतार ॥1॥ ॥दूहा॥ पढे गुणे जे सांभले, करै वरत गुणवंत। रिद्धि लब्धि लही करी, मुगति रमणी हुइ कंत॥1॥ लब्धि विधान गुण वरणव्या, फल कह्या सविशाल3। इम जाणी धर्म आचरो, भवीयण तम्हे गुणमाल ।।2।। ॥ इति श्री गौतम स्वामी रास समाप्तः।

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