Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 97
________________ 86 अपभ्रंश भारती 15-16 घत्ता- तरु मग्गिहि गयण वलग्गिहि सरल तमाल ताल सच्छण्णु। वहुविह गय सीह निसेविउ हरिणहि भाविउ एहउ वणु हरिसेणु वण्णु॥11॥ (1.12) तं पेक्खिवि भीसणि अडइ वणे हरिसेणहो गण्णु वि नाहि मणे। लघंतु जोइ गिरि कंदरई पुणु अग्गइ पेक्खइ सरवरई। सुह सलिलइ सिय कुसुमुज्जलई उववणइं गंध सय परिमलइं। पेक्खेवि मणोहरु रूउ तसु उवसमहिं जे वि कत्थाय पसु। जो जंतउ रह गय वाहणेहि धय छत्त तुरंगम साहणेहि। सो इव्वहि कम्म वसेण तहि इक्कल्लउ चलणहि भमइ महि। सम विसम दुलंघइ दुत्तरई काणणई खयालइ उत्तरइ। अविउल चित्तु मणि विगय भउ सयमण्णुहि यासउ तेण गउं। 10 घत्ता- इक्कंगु वि सियइ न मुव्वइ थिउ तावस वणु भूसिउ णाइ। रवि वयणउ किरणउ भासियउ जीविउ किंपि उदेसिं गाइ॥12॥

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