Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 103
________________ 92 ॥ भास वीनतीनी ॥ तव राजा ते जांणि, राज मुद्रा त्यजी आपणीये । कुंवर बसाइयो राजि, मंत्री सवै मिली मती घंणीयें ॥1 ॥ जोगिणी गई एक वार, उजेणी नयरी मणीयै । आवीय नयर मझारि, गीत गावै ते पापीणीए ॥ 2 ॥ ॥ भास जसौघरनी॥ तिणे अवसर मुनिवरह राउ, आव्या गुणवंत । जसौभद्र नाम निरमला, भवांतरि जयवंत ॥1॥ तीन्हं जोगीणी स्वामी देखीया, निंदा करे थोर । राज मंदिर अम्हे जाइति, अशुगन कीयो घोर ॥ 2 ॥ तुं नांगो अमंगलो, लाजवी की खाधी । कुल नारी माहि भमै अपार, इंद्रीय नहीं साधी ॥3 ॥ तिन्हं पापिणि द्वेष धरियो, मन माहि जस घोर । पाप जोड्यो अति घणो, कोप करे घन घोर ॥4॥ मुनिवर स्वामी निरमला, क्षमावंत गुणवंत । ध्यान कीयौ यौवन माहि जाइ, सहगुरु जयवंत ॥15 ॥ ते आवी तिन्हे पापिणी, चंडिका मडि जाणे । राति पैडी अंघारी घोर, मुनि कन्हे बखाणे ॥6॥ उजालो तिहां कीघौ, मुनिवर तिहां तव मोह मनि उपनौ, तेह चिंतविं अम्हे राज छोडीयंउ सार, तम्हे कारणे दीक्षा छोडी तम्हे आपणी जिम करूं मुनिवर स्वामी ध्यान मौन, छोडे तव ते नाचै पापंणी, गावे दीठो । णंठो ॥ 7 ॥ देव । अम्हे सेव ॥ 8 ॥ चंग | रंग ॥9॥ नहि मोह अपभ्रंश भारती 15-16 ॥ भास अंबिकानी ॥ हाव भाव करै घनघौर, नंगीन रूप करे आपणोए । आलिंगन देह अपार, मोह देखाडे अतिघणोए ॥1॥

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