Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 91
________________ 80 5. घत्ता 5. 10. अपभ्रंश भारती 15-16 (1.6) अणिक्कुवि जोव्वण अहिय सिया णामेण लच्छि नरवइहि पिया । सइ इंदहो कामिणी जह वरइ पहु ताय समाणु भोय रमइ । सा काम किसोयरी मिगनयणा उत्तंग पउहर ससिवयणा । अणुराय राय समाणुउ नरवइहि चित्तु वसि ताइ किउ । जावि र लिट्ठियउ पहु विण्णत्तु सामि महु भमउ रहु । उन्भमि पिय रहि सोहग्गधउ जे होइ सवत्तिहि मज्झि जउ । तहि पण भंगु णवि तेण किउ भामहि रहु नरवइ वुत्तु इउ । एत्थंत्तरि वप्पहि घरे कहिय वत्त वरु लच्छिहि दिन्नु । तें वयणें अइ दुस्सहणें णावइ तहे उरु सत्तिहि भिन्नु ॥6॥ (1.7) तिं परिहव वयणु सुणेवि खणे उम्माहउ वप्पहि जाउ मणे । अणवर अंसु धारहिं मुयइ विद्दाणी विवण देह रुअइ । मुहकमलु निवेसिवि वामकरे हिम हयसु कमलिणि जिहव सरे । नीससिवि सदुक्ख पुणु भणड़ को माइ कुडिल चित्तइ मुणइ । अविवेइय राएं काइ किउ पहु मिल्लिवि कुच्छिय पहेण थिउ । इत्तउड कालु अविछिन्न पहु' महु पढमु भवंतउ आसि रहु । सो एवहि मज्झ भग्गु पसरु सा कामिउ लच्छिहे तेण वरु । इव्वहि मई काइ जियंतियई अवमाण माण परिचत्तियई । जइ पढमु भवीसइ रहिण जिणु तो होसइ मज्झि पवित्ति पुणु । अह न भमइ निच्छउ करिवित्थिया दुविहे आहार णिवित्ति किया । घत्ता - णिच्छिय मइ वज्जिय रइ मुक्का हरण भरण सातण्ह । विद्दाणिय कोमाणिय दुद्दिणइ नाइ ससि जोन्ह ॥ 7 ॥

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