Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 31
________________ अपभ्रंश भारती 15-16 पाटलिपुत्र / कुसुमपुर- प्राचीन पाटलिपुत्र ही वर्तमान पटना नगर है जो बिहार राज्य की राजधानी है। संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश, हिन्दी आदि प्रमुख भाषाओं के अतिरिक्त अनेक उपभाषाओं में भी पाटलिपुत्र का वर्णन अनेक रूपों में किया गया है। जैन संस्कृति से तो पाटलिपुत्र विशेष रूप जुड़ा हुआ है। पाटलिपुत्र का अपर नाम कुसुमपुर था। इस ऐतिहासिक तथ्य को महाकवि पुष्पदन्त ने भी रेखांकित किया है । पुष्पदन्त के वर्णन के अनुसार पाटलिपुत्र अथवा कुसुमपुर राजनीतिक महत्त्व का नगर था, जो प्रायः शत्रुओं का रणांगण बना रहता था ( 4.9 - 10 ) । शत्रुओं द्वारा कुसुमपुर को घेरे जाने का बिम्बात्मक वर्णन पुष्पदन्त की अपभ्रंश काव्य-भाषा में द्रष्टव्य है 20 पडिवक्खरइयकडमद्दणेहिं, धुयधवलधयावलिसंदणेहिं । हिलिहिलिहिलंतहयवरथडेहिं, हणुहणुभणंतदूसहभडेहिं । गरुया गउडनरेसरेण, अरिदमणे दुट्ठे दाइएण । कुसुमउरु णिरुद्धउ जममुह छुद्धउ णरवरकोंतिहिं घट्टियउ। हरहिमकणकंतिहिं मयगल दंतिहिं पेल्लिवि कोट्टु पलोट्टियउ। 4. 7। पुष्पदन्त लिखते हैं कि कुसुमपुर में उद्यानों की बहुलता थी जिनमें हंस, मयूर, कोकिल, कपोत, सुग्गे और भौरे विचरण करते थे। केतकी को बाहर से साँप ने भले ही लपेट रखा था, पर उसके अन्तरंग को तो भौंरों ने ही जाना था । कुसुमपुर का उद्यान इन्द्र के नन्दनकानन जैसा था। महाकवि को भौंरों की प्रकृति और प्रवृत्ति का सूक्ष्म ज्ञान था। तभी तो वे लिखते हैं कि आम की कलियों पर भौंरा नहीं बैठता - अंबइयह महयरु णउ णिसण्णु ( 8.1), और चमेली पर अनुरक्त होकर वह प्रमत्त भाव से उसी के चक्कर लगाता है, किन्तु पुष्पों की विभूति प्रकट करनेवाली जूही के कड़वे और रसभंग करनेवाले अंगों को भ्रमर कभी नहीं चूमता। इस सन्दर्भ में महाकवि की छान्दसप्रवाहिनी मूल काव्यभाषा आस्वादनीय हैजो जाइह रत्तउ भइ पमत्तउ दरिसियकुसुमविहूइयहिं । घत्ता घत्ता सो कयरसभंगइँ कडुयहिं अंगइँ भमरु ण चुंबइ जूहियहिं। 8.1।। महाकवि द्वारा उपन्यस्त सौन्दर्यमूलक चित्रों में चिन्तन की गरिमा, सुष्ठु शब्द - चयन, सादृश्य-विधान एवं अलंकार - योजना तथा स्थापत्य - कौशल का महिमामय प्रयोग आदि उदात्तता के नियामक अन्तरंग और बहिरंग तत्त्वों का सन्निवेश बड़ी ही समीचीनता से हुआ है। उपर्युक्त देशों और स्थानों के प्रत्यक्ष और विशद वर्णन में महाकवि ने जितनी अभिरुचि ली है उतनी अन्य देशों के सम्बन्ध में नहीं दिखाई है। उन सबका वर्णन प्रायः नाम और इतिवृत्तात्मक है।

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