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अपभ्रंश भारती 15-16
का भौगोलिक और सामाजिक जीवन अतिशय मनोरम और हृदयावर्जक है। इनमें कतिपय देश ऐतिहासिक हैं और कतिपय मिथकीय कल्पना पर आधृत हैं। ज्ञातव्य है, ऐतिहासिक सत्य और मिथकीय कल्पना की बुनावट से ही किसी काव्य या महाकाव्य या युगविशेष की कथा की रचना होती है। महाकवि ने अपनी कल्पनाशक्ति से कुछ देशों और नगरों का विशद वर्णन उपस्थित किया है और कुछ का केवल प्रासंगिक उल्लेख मात्र किया है। प्रस्तुत आलेख में भी महाकवि के ही रचना-प्रकार का अनुसरण किया गया है।
मगधदेश- मगधदेश की भौगोलिक स्थिति के बारे में पुष्पदन्त निर्देश करते हैंइस संसार के मध्य लोक में सूर्य-चन्द्र से प्रकाशित विशाल जम्बूद्वीप है, जिसके मध्य में सुदर्शन नाम का मेरु है। वहाँ अपने प्रिय आहार कसेरु-कन्द के लिए जमीन खोदते हुए वराह विचरण करते रहते हैं। उसी मेरु की दक्षिण दिशा में भरत क्षेत्र है जिसमें सुप्रसिद्ध मगधदेश अवस्थित है।
आधुनिक या वर्तमान हिंसाबहुल मगधदेश से भिन्न उस समय के मगधदेश में अनेक पद्मसरोवर थे, जिनमें पद्म-पराग से रंजित हाथी पौंडते रहते थे। वहाँ कल्पतरुओं से सघन वन नन्दन वन जैसे थे। धान की पकी फसलों से भरे खेत दूर-दूर तक फैले हुए थे। वहाँ दूधजैसे जल से भरे सरोवरों में हंसों और बगुलों की पंक्तियाँ सरोवर को सम्मान देती-सी प्रतीत होती थीं। वहाँ की कामधेनु जैसी गायें घड़ों घृतमय दूध देती थीं और कृषि-सम्पदा न केवल मनुष्यों, अपितु समस्त जीवों के लिए पोषाहार सुलभ करती थी। फसलों की बालियाँ सघन
और पुष्ट दानोंवाली होती थीं। वहाँ के पथिक दाख के मण्डप में विश्राम कर और स्थलपद्मों । पर सोकर अपनी मार्ग-क्लान्ति मिटाते थे। वे पथिक कृषक-स्त्रियों की मधुर वाणी से आकृष्ट होकर स्वर-लुब्ध मृग की भाँति बीच रास्ते में ही रुक जाते थे। महिषों के सींगों से छिली हुई ईख के डण्डों से मधुर रस चूता रहता था। मरकतमणि के समान हरे पंखों वाले सुगे आम के गुच्छों पर बैठे दिखाई पड़ते थे (1.6)।
इस प्रकार युगचेता महाकवि पुष्पदन्त ने मगधदेश के वर्णन में वहाँ की उन्नत कृषिसम्पदा के साथ ही सघन वन, सजल सरोवर, फूल-फल, दूध-दही, परितुष्ट पशु-पक्षी आदि पर्यावरण के प्राकृतिक तत्त्वों को अपनी सूक्ष्मेक्षिका से लक्षित किया है, और फिर मधुरभाषिणी कृषक-स्त्रियों द्वारा उस देश के पथिकों का वाचिक समादर होता था, इस ओर भी महाकवि ने संकेत किया है। अवश्य ही, महाकवि को लोकजीवन के आसंग में प्रकृति के निरीक्षण की सातिशय सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त थी।
राजगृह- मगधदेश में राजगृह नगर की ऐतिहासिक प्रसिद्धि रही है। इसे प्राचीन मगध-जनपद के राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। इसका अन्य नाम 'गिरिव्रज' है। अपभ्रंश