Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 28
________________ अपभ्रंश भारती 15-16 अक्टूबर 2003-2004 17 'णायकुमारचरिउ' में देश-वर्णन - विद्यावचस्पति डॉ. श्रीरंजनसूरिदेव महाकवि पुष्पदन्त (ईसा की नवीं-दसवीं शती) द्वारा प्रणीत ‘णायकुमारचरिउ' अपभ्रंश के धुरिकीर्तनीय काव्यों में अन्यतम है। इस चरित-काव्य का नायक राजपुत्र नागकुमार (प्रा. → णायकुमार) है। उसके माता-पिता पृथ्वीदेवी और जयन्धर कनकपुर के रानी और राजा थे। सजा जयन्धर के दूसरी रानी भी थी- विशालनेत्रा। नागकुमार के सौतेले भाई का नाम श्रीधर था, जो रानी विशालनेत्रा का पुत्र था। नागकुमार सौतेले भाई श्रीधर के विद्वेषवश अपने पिता द्वारा निर्वासित कर दिया जाता है। नागकुमार अपनी निर्वासनावधि में अनेक देशों का भ्रमण करता है और अपने पराक्रम द्वारा अनेक राजाओं, राजकुमारों तथा राजपुरुषों को प्रभावित करता है, अनेक राजकुमारियों को अपनी विवाहिता बनाता है। अन्ततोगत्वा पिता द्वारा आमन्त्रित होकर वह पुनः अपने नगर (मगधदेश स्थित कनकपुर नामक नगर) लौट आता है, जहाँ समारोहपूर्वक उसका राज्याभिषेक किया जाता है। नागकुमार पिता द्वारा प्राप्त राज-काज को कुशलतापूर्वक सम्भालता है। जीवन के अन्तिम भाग में वह संसार से विरक्त होकर मुनि- दीक्षा धारण करता है और तपोविहार करते हुए मोक्षगामी होता है। महाकवि ने अपने इस अपभ्रंश काव्य में कई देशों का वर्णन किया है, जिनमें मगध देश-स्थित राजगृह, कनकपुर, पाटलिपुत्र, कुसुमपुर, मथुरा, कश्मीर, ऊर्जयन्त पर्वत-तीर्थ, गिरिनगर, गजपुर पाण्ड्यदेश, उज्जैन, मेघपुर, दन्तीपुर आदि उल्लेख्य हैं। इन देशों या स्थानों

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