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अपभ्रंश भारती 15-16
की भाँति तथा मुहावरे का क्रिया की भाँति होता है। मुहावरा वह गठा हुआ वाक्यांश है जिससे कुछ लक्षणात्मक अर्थ निकलता है। ये लोक-जीवन के प्रचलित वे सिक्के हैं जिनका मूल्य कभी नहीं बदलता। इनके प्रयोग से कवि की अभिव्यंजना-कुशलता का परिचय मिलता है। करकण्डचरिउ में यद्यपि इनका प्रयोग बहुत अधिक नहीं हुआ है, लेकिन जो हुआ है उसमें एक संजीदगी और व्यंजकता लक्षित होती है।
___ चौथी सन्धि के 15वें कड़वक में 'चिंताविवण्णु थिउ मंदसउ' - फीका मुख होना तथा 'करु वयणे णिवेसिवि णिउ थियउ' - हाथ पर मुँह रखकर बैठना के द्वारा करकण्ड की चिन्तामग्न मानसिकता को व्यक्त किया गया है। सिंहासन के ऊपर की गाँठ को तुड़वाने पर जो विकृति जिन-प्रतिमा में आ गई उससे उसका चिन्तामग्न तथा उदास हो जाना स्वाभाविक है। क्योंकि इसे वह धार्मिक अपराध-बोध से स्वीकार करता है। इसी सन्धि में 17वें कड़वक में देव के आत्म-परिचय में भूधरों को चूर-चूर करने की बात उसकी शक्ति के प्रदर्शन के निमित्त पर्याप्त है- 'मुसु-मूरमि भूधर विप्फुरंत'।
. पाँचवीं सन्धि के 14वें कड़वक में हाथी के क्रोध एवं आक्रोश को व्यक्त करने में उसका मुख मोड़कर सेना को देखना बड़ा सटीक है, जो इस मुहावरे के द्वारा ही साकार हो सका है- 'अवलोइय करिणा मुहु वलेवि'। ऐसे अनेक सार्थक मुहावरों का प्रयोग इस कृति में हुआ है, यथा1. पयभारें मेइणि णिद्दलंतु- पृथ्वी को रौंदना ..
(5.14.4) 2. हेट्ठामुहुँ लज्जइँ हुउ खणम्मि- लज्जा से मुँह नीचा करना (5.16.8) 3. धरणियले णिवडिउ सिरु धुणंतु- सिर धुनना
(6.7.4) 4. परिफुरियउ तं महो वयणे- मुख पर रंग आ गया (6.9.6) 5. करयलकमलहिँ सुललियसरलहिँ उरु हणइ- छाती पीटना (7.11.7) 6. हियवइँ तक्खणे संचडिउ- हृदय पर चढ़ गया
(7.14.10) 7. हणंति दो वि कुक्खिया- कोंख को कूटना
(9.3.6) 8. कर मउलिवि सव्वउ तहिँ थियाउ- हाथ मलना (10.24.6)
काव्य की अभिव्यक्ति में भाषा की शब्द-शक्तियों का भी अपना महत्त्व होता है। कथन में वक्रता तथा चमत्कार की सृष्टि इन्हीं के द्वारा होती है। ये शक्तियाँ तीन कही गई हैंअभिधा, लक्षणा और व्यंजना। अभिधा का प्रयोग सामान्य कथनों में होता है। पर, काव्य की दृष्टि से लक्षणा और व्यंजना ही अधिक प्रयोजनीय हैं। अस्तु, 'लक्षणा' शब्द की वह शक्ति है जिसके द्वारा मुख्यार्थ की बाधा होने पर रूढ़ि या प्रयोजन को लेकर मुख्यार्थ से सम्बन्ध रखनेवाला अन्यार्थ लक्षित होता है। ऐसे शब्द को लाक्षणिक शब्द तथा उसके अर्थ को