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अपभ्रंश भारती 15-16
19 कवि आचार्य पुष्पदन्त इस नगर का 'मानवीकरण' अलंकार द्वारा मनोरम बिम्ब-विधान करते हुए लिखते हैं- .
स्वर्ण और रत्नों की राशि से निर्मित तथा स्वर्गीय सुषमा से मण्डित राजगृह मगधदेश का उत्तम नगर है। वह पुराकाल में ऐसा लगता था, जैसे- देवेन्द्रों द्वारा बलपूर्वक पकड़ रखने पर भी उनके हाथ से छूटकर धरती पर आ गिरा हो। इस नगर में अनेक पद्मसरोवर थे, जिनमें खिले हुए कमल राजगृह नगर के नेत्र जैसे थे। हवा से जब पद्मवन हिलते थे तब वह नगर नृत्य करता-सा प्रतीत होता था और वहाँ के लतागृह नगर के लुका-छिपी खेलने के आश्रय के समान थे। वहाँ के शुभ्र जिन-मन्दिर नगर के हास-उल्लास जैसे थे। कामबाण से आहत कामुक कबूतरों की चीख के ब्याज से वह नगर चीत्कार करता-सा प्रतीत होता था। परिखा (खाई) में भरा हुआ जल उस नगर के परिधान के समान था। सफेद परकोटों से वह नगर चादर ओढ़े हुए-सा लगता था। नगर के विमानोपम भवनों के शिखर आकाश चूमते हुए तथा चन्द्रमा की अमृतधारा पीते हुए-से दिखाई पड़ते थे। कुंकुम की छटा से नगर-भूमि रतिभूमि जैसी बन गई थी जिससे रतिसुख की व्यंजना हो रही थी। सजी हुई मोतियों की लड़ियाँ नगर के मुक्ता-द्वार के समान दृष्टिगत होती थीं। वह नगर पंचरंगे ध्वजों से रंग-बिरंगा लग रहा था। उस रमणीक नगर में चारों वर्गों के लोग परस्पर समभाव के साथ निवास करते थे (1.7) । यह बात और है कि महाकवि पुष्पदन्त द्वारा वर्णित ‘राजगृह' और आज के 'राजगीर' में कोई साम्य नहीं है। महावीर और बुद्ध की शान्ति-वाणी से जिस नगर का कणकण मुखर बना रहता था उसे आज केन्द्रीय सरकार ने हिंसाकारी आयुधों के निर्माण का केन्द्र बना दिया है।
कनकपुर- महाकवि पुष्पदन्त ने कनकपुर को मगध जनपद का ही नगर माना है। किन्तु, अवश्य ही यह कवि-कल्पित नगर ही है। महाकवि की काव्य-भाषा में सुवर्ण-निर्मित कनकपुर के भवनों में बहुरंगे मणि-माणिक्य जड़े हुए थे। मणियों में सूर्यकान्तमणि, चन्द्रकान्तमणि, मरकतमणि, स्फटिकमणि और इन्द्रनील मणियों की बहुलता थी। सूर्यकान्तमणि नगर-भूमि को तप्त करती थी। चन्द्रकान्तमणि से झरते जल से वहाँ की भूमि आर्द्र हो जाती थी। मरकतमणि की कान्ति से नगर की भूमि हरी दिखाई पड़ती थी और स्फटिक मणि से श्वेत वर्ण की। इन्द्रनील-मणि वहाँ की भूमि पर अपनी नीली आभा बिखेरती थी। इस प्रकार वह नगर इन्द्रपुरी को भी मात करता था (1.14)।
__ पुष्पदन्त की साहित्यिक कला-चेतना में कल्पना का सर्वोपरि स्थान है। कल्पनाशक्ति के माध्यम से ही काव्यकार ने कनकपुर की नूतन सृष्टि और अभिनव रूप-विधान का सामर्थ्य प्राप्त किया है। कनकपुर में मणियों की कल्पना द्वारा महाकवि ने ऐसी मानसिक काव्य-सृष्टि की है जिसमें समृद्धतर स्थापत्य सौन्दर्य की मोहक रमणीयता का प्रीतिकर विनियोग हुआ है।