Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 15
________________ अपभ्रंश भारती 15-16 शरणागत-वत्सल- राम के व्यक्तित्व में शरणागत-वात्सल्य का भी एक बहुत बड़ा गुण है जिसके मन में दया का सागर तरंगित है। विभीषण भाई को छोड़कर राम की शरण में आता है तो राम उसे गले लगाकर कहते हैं- मैं तुम्हें लज्जित नहीं होने दूंगा और समग्र लंका का राज्य तुम्हें दूंगा। रावण का सिर तोड़कर में उसे कृतान्त का अतिथि बनाऊँगा। मानस एवं रामायण के विभीषण को राम से यह स्पष्ट आश्वासन नहीं मिलता कि मैं रावण को मारकर राज्यश्री तुम्हारे हाथों में सौपूँगा। यह पउमचरिउ में राम के व्यक्तित्व का विशेष गुण है जो उसके व्यक्तित्व को आलोकित करता है। राम हनुमान, अंगद, सुग्रीव आदि के प्रति कृतज्ञ हैं। यह मानकर नहीं कि ये सब अपने-अपने कर्तव्य निभा रहे हैं! बल्कि ये बेचारे अपनी शक्ति की सीमा को पारकर मुझ पर उपकार कर रहे हैं। इसीलिये सीता की सूचना देने पर राम हनुमान को गले लगाते हैं। जब राम वन-मार्ग में बढ़ते हैं तो उन्हें सुरति-युद्ध दिखायी देता है। राम उसे देखकर हँस देते हैं किन्तु उनके मन में किसी प्रकार के कुविचार नहीं आते हैं। यह उनके आत्म-संयम की कठोर परीक्षा है। उपकार, दया, सोचने की क्षमता ये उनके व्यक्तित्व का विकास करते हैं। वे मार्ग में गिरे हुए गृद्ध-पक्षी को मोक्ष पहुँचाते हैं। सुग्रीव की मित्रता निभाने के लिए विट सुग्रीव को मारते हैं। छल-कपट, दाव-पेंच, धोखाधड़ी उनसे लाखों कोस दूर रहते हैं। सीता-निर्वासन के समय राम जितने कठोर एवं शंकास्पद है उससे कई गुना सरल, मृदु एवं क्षमाभावी भी हैं। सीता के निर्दोष प्रमाणित होने पर वे उससे क्षमायाचना करते हुए कहते हैं- क्षुद्र निन्दकों के छल-छन्द में पड़कर मुझसे बड़ी भूल हो गई है। मैंने तुम्हारा अपमान किया है और बहुत दु:ख दिया है। हे परमेश्वरी, एकबार मुझ पर दया करके मेरा अपराध क्षमा कर दो। इस प्रकार सामाजिक क्षेत्र में राम ने कदम-कदम पर मर्यादा एवं आदर्श का निर्वाह किया है। साहसी एवं पराक्रमी- युद्ध के पूर्व राम अंगद को रावण के पास दूत बनाकर भेजते हैं ताकि नीति के विरुद्ध कोई कार्य न हो। राम का समुद्र से रास्ते के लिए प्रार्थना करना यह भी नीति एवं मर्यादा के अनुरूप है, यदि वे चाहते तो बलात् ये कार्य करवाया जा सकता था। किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। ऐसा करने से मर्यादा, धैर्य एवं नीति का निर्वाह नहीं किया जा सकता जिससे राम का व्यक्तित्व दब सकता था। किन्तु अधिकतर राम-कथाकारों ने राम के व्यक्तित्व को दबने से बचाया है। लक्ष्मण पर जब

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