Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 16
________________ अपभ्रंश भारती 15-16 शक्ति का प्रहार होता है उस समय राम का हृदय तिलमिला उठता है, किन्तु धैर्य का अवलम्बन लेते हुए लक्ष्मण को जीवित करते हैं। वे लक्ष्मण की प्रेरक शक्ति के रूप में दिखाई देते हैं। वे कभी भी अनुचित मंत्रणा नहीं देते। इस प्रकार युद्ध-क्षेत्र में राम नीतिमर्यादा एवं धैर्य के अथाह समुद्र हैं। रावण की मृत्यु होने पर राम के व्यक्तित्व की एक और विशेषता दिखाई देती- साधारण व्यक्ति तो अपने शत्रु के नष्ट होने पर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भागते हैं किन्तु राम ऐसा नहीं करते, वे लपककर सीता के लिए नहीं जाते अपितु भाई के विछोह पर विभीषण के आँसू पौंछते हैं। उन्हें भविष्य के लिए आश्वस्त करके रावण की अन्त्येष्टि क्रिया सम्पन्न कराते हैं। मन्दोदरी एवं अन्य जनों को राम उपदेश देते हैं जिससे वे वैराग्य धारण कर लेते हैं। मेघनाद, कुम्भकर्ण सभी दीक्षित हो जाते हैं। यह विचारधारा जैन रामकथा में किसी न किसी रूप में अवश्य पाई जाती है। किन्तु जैनेतर रामकथाओं में पात्रों का दीक्षित होना नहीं पाया जाता। . इस प्रकार युद्ध-क्षेत्र में राम में मर्यादा, आदर्शवादिता, धैर्य, उत्साह, वीरता, सहिष्णुता आदि गुण दिखाई देते हैं। धर्मपरायण- धर्म के क्षेत्र में राम लक्ष्मण से हमेशा आगे रहते हैं। मुनियों पर किये गये उपसर्गों को दूर करने में भी राम अधिक क्रियाशील दिखाई देते हैं। ‘पुराण कथाओं में भी उनकी अधिक जानकारी एवं रुचि है। वह स्थल बड़ा ही सुन्दर है जहाँ राम सीता को वट वृक्ष आदि उन सभी वृक्षों का नामपूर्वक संकेत करते हैं जिनके नीचे तीर्थंकरों ने केवलज्ञान प्राप्त किया था। किसी भी कार्य को करने के पूर्व या बाद में राम जिन-पूजा या जिनस्तुति में संलग्न दिखाई देते हैं। विट सुग्रीव का विनाश एवं सुग्रीव से मित्रता स्थापित करने के तुरन्त पश्चात् जिनस्तुति इन शब्दों में करते है- जय हो, तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी मति हो, तुम्हीं मेरे शरण हो, तुम्हीं मेरे माँ-बाप हो, तुम्हीं मेरे बन्धु हो।' राम के व्यक्तित्व में कही-कहीं अज्ञानता एवं मोह भी दिखाई देता है, जैसे- लक्ष्मण की मृत्यु पर राम अत्यधिक विलाप करते हुए पागल की तरह उसके शव को छ: महीने तक लेकर भटकते रहते हैं, तब उन्हें देवताओं के द्वारा प्रतिबोधित किया जाता है। ऐसी ही कथा उद्योतन सूरीकृत 'कुवलयमालाकहा' में भी आती है जिसमें वणिक् सुन्दरी अपने पति की मृत्यु के बाद शव को छ: माह तक लेकर भटकती रहती है। अन्त में शव में कीड़े लगने पर एवं परिजनों के द्वारा समझाने पर दाह-संस्कार करती है।" शव में सड़ान्ध आना एवं कीड़े लगना तथा मोह एवं अज्ञान का नष्ट होने जैसी ही एक कथा ‘रयणचूडरायचरियं' में शंखपुर के विष्णुश्री के दृष्टान्त में आती है जिसमें शव में सड़ान्ध एवं कीड़े लग जाते हैं।

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