Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 12
________________ अपभ्रंश भारती 15-16 अक्टूबर 2003-2004 पउमचरिउ में 'राम' का व्यक्तित्व - डॉ. हुकमचन्द जैन भारतीय साहित्य में जिन महापुरुषों ने जन-मानस को अधिक प्रभावित किया है उनमें राम का व्यक्तित्व प्रमुख है। राम-कथा जन-जीवन में प्रारम्भ से ही इतनी प्रचलित रही है कि विभिन्न युगों के कवियों ने विभिन्न भाषाओं में उनके व्यक्तित्व को कई दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया है। रामकथा संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं में प्रचलित रही है। आदि- कवि बाल्मिकी ने राम को आदर्श मानव, जैन कवियों ने उन्हें भव्यपुरुष एवं तुलसीदास ने भगवान के रूप में स्वीकार किया है। अतः राम का व्यक्तित्व बहुआयामी हो गया है। जैन-परम्परा में रामकथा को प्रस्तुत करनेवाले महाकवि विमलसूरि हैं। उन्होंने अपने प्राकृत ग्रन्थ ‘पउमचरियं' में राम को एक साधारण मानव की दृष्टि से चित्रित किया है।' आचार्य रविषेण ने संस्कृत ग्रन्थ 'पद्मपुराण' में राम के सर्वांगीण सौन्दर्य को चित्रित किया है। उन्हें दया, करुणा, प्रेम, शील, शक्ति का खजाना माना है। 'पउमचरिउ' में स्वयंभू ने इसी जैन-परम्परा को अपनाया है। अतः उन्होंने राम के व्यक्तित्व में लगभग ये ही गुण वर्णित किये हैं। किन्तु उनकी शैली एवं दृष्टि में विशिष्टता है। पराक्रमी बालक - पउमचरिउ में राम के व्यक्तित्व का विकास उनकी युवावस्था

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