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णमो जिणाणं अनुत्तरज्ञानचर्या का प्रथम वर्ष समर्पण की सौरभ
पदयात्रा की एक झलक :
भगवान् का कैवल्य ज्ञान महोत्सव ऋजुबालिका नदी के तट पर देवो ने हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न किया ।' बडी धूमधाम से उत्सव मनाने के अनन्तर शक्रेन्द्र स्वय सौधर्म देवलोक मे जाने को समुद्यत हुआ। भारतवर्ष की भूमि से कोटाकोटि योजन दूर घनोदधि' पर आधारित सौधर्म देवलोक" अपने दिव्य आलोक से चहुँ ओर आलोक विकीर्ण करता हुआ अर्धचन्द्राकार रूप से अवस्थित अनेक देव देवियो के आकर्षण का केन्द्र था । तेरह मजिला' यह सौधर्म कल्प सभी वैमानिक देव - देवियो मे सर्वाधिक विमानो को समाहित करने वाला है । ' इसमे रहे हुए बत्तीस लाख विमान त्रिकोण, चतुष्कोण" एव गोल', जो कि एक-दूसरे से असख्ये योजन दूर, पक्तिबद्ध रूप से अपनी शोभा से नेत्रो को स्तम्भित कर रहे हैं। इन्हीं पक्तिबद्ध विमानो के मध्य विविध आकार धारण किये हुए "पुष्पावकीण" विमान पुष्प की तरह यत्र-तत्र सर्वत्र बिखरे हुए-से प्रतीत होते हैं। प्रत्येक मजिल के मध्य मे रहे हुए विमान, इन्द्रक विमान' के नाम से विख्यात है, जिनमे शक्रेन्द्र एव उनके सामानिक' देव निवास करते हैं ।
प्रत्येक इन्द्रकविमान' एव आवलिका प्रविष्ट " विमानो के बीच चार दिशाओ मे चार "अवतसक बने हुए हैं। पूर्व मे अशोक अवतसकvii, दक्षिण मे सप्तपर्ण अवतसक, पश्चिम मे चम्पक अवतसक और उत्तर मे आम्र अवतसक अपनी भव्य आभा से देवो को भी मंत्र-मुग्ध करने वाले हैं। इनके मध्य मे सौधर्म अवतसक है। इन सभी मे उस-उस विमान के अधिपति देव का निवास स्थान है।
अनुत्तर ज्ञान- केवल ज्ञान (क) शक्रेन्द्र-प्र - प्रथम देवलोक का इन्द्र (ग) घनोदधि - घना जमा हुआ पानी (ङ) वैमानिक - विमान में रहने वाले देव (12 अनुत्तर विमानवासी देवो के लिए रूद) (च) पुष्पावकीण- फूल की तरह बिखरे
(छ) सामानिक देव - इन्द्र के समान ऋद्धि वाले किन्तु इन्द्र पदवी से रहित देव
(ज) आवलिका प्रविष्ट - पंक्ति रूप मे रहे हुए (झ) अवतंसक श्रेष्ठ महल (न) अशोक अवतंसक- अशोक नामक महल (विमान)
(ख) सौधर्म - प्रथम देवलोक का नाम (घ) आलोक विकीर्ण-प्रकाश फैलाना देवलोक 9 लोकान्तिक 9 ग्रैवेयक और 5
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