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2 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय
इन्द्रक विमान के चारो ओर चार अवतसक और मध्य मे सौधर्म अवतसक है। इसी सौधर्म अवतसक के मध्यातिमध्य भाग मे शक्रेन्द्र का सौधर्म विमान है। ऋजुवालिका से आगत शक्रेन्द्र ने इसी सौधर्म विमान में प्रवेश किया। सौधर्म विमान की चारो दिशाओ मे श्वेतवर्णी एक-एक हजार द्वार आकर्षक, विचित्र चित्रो से चित्रित हैं। मणियो की जगमगाहट से उद्योतित' द्वारो के उभय पार्दोष मे बने विशाल मच अपनी दिव्य आभा से देवो की महर्द्धि को प्रदर्शित कर रहे हैं। मचों पर रखे सुगठित चन्दन कलश अपनी भीनी-भीनी महक से वायुमण्डल मे मलयज प्रसरित कर रहे हैं। मचो के ऊपरी भाग पर नागदत (खूटियाँ) हैं, जिन पर लटकती वन मालाएँ जगती तल के विवाह मण्डप की शोभा को निरस्त कर रही हैं। उनके ऊपर बनी खूटियो पर लटकते हुए छीके, जिनमें धूप दान रखे हुए हैं। वे अगरु, तुरुष्क, लोबान आदि की गध से मानो देवलोक को गधवटिका के समान बना रहे हैं। मचो पर मणिमय चबूतरे बने हुए हैं और उन चबूतरो पर भव्य प्रासाद निर्मित ह। उन प्रासादो मे सिहासन, भद्रासन रखे हुए है, जिन पर इन्द्र के सामानिक देव अपने परिवार सहित ऋद्धि का उपभोग करते हैं।
सोधर्म विमान के ठीक मध्यातिमध्य भाग मे शक्रेन्द्र का उपकारिकालयन राजभवन है। यह राजभवन अपने से 500-500 योजन दूर चारो ओर से चार वनखण्डों (अशोकवन, सप्तपर्ण वन, चम्पक वन और आम्र वन) से घिरा है। इसी वनखण्ड मे शक्रेन्द्र ने प्रवेश किया। विशालकाय सघन वृक्षो से घिरा यह वनखण्ड कृष्ण मेघमाला की द्युति को धारण किये हुए है। समश्रेणि" मे स्थित तरुवृन्द पुष्प-फलो से लदे, अत्यन्त झुके हुए थे। वहाँ रहे हुए फल स्वादिष्ट, निरोग एव निष्कटक थे। नवीन मजरियो से शृगारित होकर पादप-वृन्द शक्रेन्द के स्वागत मे आतुर था।
तरुवृन्दों के मध्य बने हुए लतागृह, कदलीगृह क्रीडास्थली की विशेष शोभा (क) मध्यातिमध्य-ठीक बीचो बीच (ख) श्वेतवर्णी-श्वेत रग वाले (ग) उद्योतित-प्रकाशित
(व) उभयपार्श्व-दोनो ओर (ट) मलयज-चन्दन से उत्पन मुगध (च) प्रासाद-महल (छ) भद्रासन-एक प्रकार का सिंहासन (आसन) (ज) ठपकारिका लयन-प्रगासनिक कार्यों की व्यवस्था के लिए निर्धारित भवन (स) वनखण्ड-जिस उद्यान में भिन्न जाति के उत्तम व हाते है उसे वनखण्ड कहते है
- जीवाजीवाभिगम चूर्णी (भा समणि-कताबद्ध टि) पादपवृन्द-वृष समूह ट, तरुवृन्द-वृक्ष-ममूह