Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: 

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीअनुमा स्थापना अतदाकारवती चासद्भावस्थापनेति, उक्तं च-"अक्खे वराडए वा कहे पोत्थे व चित्तकम्मे वा / सब्भावमसम्भावं ठवणाकायं 3 आवश्यकहारि.वृत्तीलावियाणाहि // 1 // लेप्पगहत्थी हस्थित्ति एस सम्भाविया भवे ठवणा / होइ असम्भावे पुण हस्थिति निराकिती अक्खो // 2 // ' आव निक्षेपाः // 8 // श्यकमिति क्रियाक्रियावतोरभेदात्तद्वानत्र गृह्यते, स्थापना स्थाप्यते-स्थापना क्रियते 'से त' मित्यादि, तदेतत्स्थापनाऽऽवश्यकं / साम्प्रतं नामस्थापनयोरभेदाशकापोहायद सूत्रं 'नामठवणाण' मित्यादि, (11-15 ) कः प्रतिविशेषो नामस्थापनयोरिति समासार्थः / आक्षेपपरि| हारलक्षणो विस्तरार्थस्त्वयं-'भावरहितम्मि दव्वे णामढवणाओ दोवि अविसिट्ठा / इतरेतरं पडुच्चा किह व विसेसो भवे तासि // 1 // कालकतोऽत्थ विसेसो णाम ता धरति जाव तं दव्वं / ठवणा दुहा य इतरा यावकहा इत्तरा इणमो // 2 // इह जो ठवणिंदकओ अक्खो सो पुण ठविज्जए राया। एवित्तर आवकहा कलसादी जा बिमाणेसु // 3 // अहव विसेसो भण्णति अभिधाणं वत्थुणो णिरागारं / ठवणाओ आगारो सोवि य णामस्स णिरवेक्खो // 4 // से किं त' मित्यादि, (12-14) तत्र द्रवति-गच्छति तांस्तान् पर्यायानिति द्रव्य, द्रव्यं च | तदावश्यकं च द्रव्यावश्यकं, भावावश्यककारणमित्यर्थः, द्रव्यलक्षणं चेदं- 'भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके / तद्रव्यं | तत्त्वज्ञैः सचतनाचेतनं कथितम् // 1 // इह चावश्यकशब्देन प्रशस्तभावाधिष्ठिता देहादय एवोच्यते, तद्विकलास्तु त एव द्रव्यावश्यकमिति, उक्तं च-"देहागमकिरियाओ दव्वावासं भणंति सव्वण्णू / भावाभावत्तणओ व्वजितं भावरहितं वा // 1 // ' विवक्षया विवक्षितभाव रहित एव देहो गृह्यते, जावो न सामान्यतो, भावशून्यत्वानुपपत्तेरलं प्रसङ्गेन, प्रकृतं प्रस्तुमः, द्रव्यावश्यकं द्विविधं प्रज्ञप्त, तद्यथा-आगमत:&ाआगममाश्रित्य नोआगमतश्च, नोशब्दार्थ यथाऽवसरमेव वक्ष्यामः, चशब्दो द्वयोरपि तुल्यपक्षतोद्भावनाएँ / 'से किं त' मित्यादि, // 8 // (13-14) आगमतो द्रव्यावश्यकं 'जस्स ण' मित्यादि, यस्य कस्यचित् 'ण' मिति वाक्यालङ्कारे आवश्यकमित्येतत्पदं, इह चाधिकृत For Private and Personal Use Only

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