Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४४
जलमां माछलीनी जे हालत थाय तेवी मारी हालत थाय छे." (गा.४४)
आत्महित-चिन्तामां सर्वभावे सरी पडेला कर्ता पोतानी वात केटली सहज सरलताथी करे छे ते जोवा जेतुं छे. कहे छे : "आवी (उत्तमअनित्यादि) भावना भावतो होउं ने मारुं मृत्यु जो आवी जाय तो हुं खूब धन्य होईश; बीजुं कांई मने जोईतुं नथी."(गा. ४९)
"कोईवार कर्माधीन एवा मारा चित्तमां, भावनानुं आ अमृत न उल्लसे तो भले; पण बीजाओने ते भावना भावता जोईने पण, क्यारेक हुं तेने चूंटुं, एव॒ये बने तो केटलुं सारुं थाय !" (गा. ५०)
गा. ४५-४६ वे अपभ्रंशमां छे. गा. ३२ मां बे चूलिका, चिन्तन करवानी शीख आपी छे ते दशवैकालिक सूत्रनी अन्तिम बे चूलिका विषे हशे तेम अटकळ थाय छे. ५६ गाथानी आ रचना वि.सं. १२३९ना वैशाख शुदि पांचमना दिने रच्यानो उल्लेख गा. ५६मां छे. रचना, समग्रपणे, प्रेरणादायी अने भावनानो उल्लास जगाडनारी छे..
५-६. पांचमी रचनाने 'हितशिक्षाकुलक' नाम आपेल छे. ते प्राकृत तथा अपभ्रंश-उभय भाषानी मिश्र रचना जणाय छे.पोताना आत्माने उद्देशीने आपेली शीखामण आमां पद्यबद्ध थई छे, जे मननीय छे.
छठ्ठी रचना 'संवेगचूलिका' छे. आमां स्त्री-शरीरासक्त मनुष्यने, स्त्रीनां अंगोनां बाह्य स्वरूपने जोतां जेटलो उल्लास ऊपजे छे, तेनी सामे, ते ज अंगोनां आन्तरिक स्वरूपनां दर्शन थाय तो तेनी दशा केवी थाय तेनुं वर्णन करतां, वैराग्यनो बोध आपवामां आव्यो छे.
७-१३. आ तमाम रचनाओ श्रीनेमिनाथ तथा श्रीपार्श्वनाथनां विज्ञप्ति-स्तोत्रात्मक रचनाओ छे. आमां १०-११ बे रचनाओ अपभ्रंशमां छे, १३मी रचना संस्कृतमां छे. ९मी रचनामां कर्ताए शृङ्खलायमक ( प्रत्येक गाथानां चारेचार पदोमां) नियोजीने पोतानु अलङ्कारपाण्डित्य तथा रचनाकौशल्य प्रगटाव्युं छे. ११मी
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