Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून २००८
२० ॥
रे ! गिहकज्जेसु सया दक्खो छेओ अईव सूरोसि । भविडं कायरदेहो सुनो विव सुणसि गुरुवयणं ॥ १९ ॥ किं चिंता किं पलविएण किं तुज्झ जीव ! रुन्नेणं । नो कत्थइ कल्लाणं धम्माओ विणा तुमं लहिसि देहमिणं गेहं पिव जं गहियं भाडएण पणदियहं । झुरइ सया सव्वत्थवि पडितुल्लं असुइधाऊहिं ॥ २१ ॥ निच्चं अपोसियं पुण जं मेल्लइ सत्तिनियममज्जायं । तत्थवि का तुझ रई रे जीव ! निलक्खणसहाव ! ॥ २२ ॥ जं जं भणामि अहयं सयलंपि बहिं पलाइ तं तुज्झ । भरियघडयस्स उवरिं जह खिवियं पाणियं किंपि ॥ २३ ॥ इह जिय ! मुणसि पलोयसि संसारे तं विडंबणं सयलं । मन्ने जं नवि रज्जसि तं वंछसि नारयदुहाई ॥ २४ ॥ वयणं भणियमिणं तरामि नो सिक्खिउं चवेडाए । सम्मं विभाविऊणं जं जुत्तं तं करेज्जासु ॥ २५ ॥ एयं उवएसकुलं जो पढइ सुणेइ अहव सद्धाए । सो उवमिज्जइ तेए दुह एणे (तेणं दुहिएणं ?) रयणसिंहेणं ॥ २६ ॥ छ ॥
2003
(२०) श्री नेमिनाथ स्तव
सयलतियलोक्कतिलयं निलयं विउलाण मंगलकलाण । वियलिय कलुसकलकं नेमिं थोसामि किंपि अहं ॥ १ ॥ तेत्तीसं अयराई वसिउं अवराइयंमि सामि ! तुमं । कत्ति दुवाल सीए किन्हाए इह समोइनो || २ || सोरियपुरंमि नयरे भवणे सिरिसमुद्दविजयस्स । सिवएवि - कुच्छिकमले वसिउ (ओ) हंसोव्व जयनाह ! || ३ || उज्जयंतो भुवणं सावणसियपंचमीए तं जाओ । गोयमगोत्ते जयगुरु चित्ताए कन्नरासिंमि ॥ ४ ॥
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