Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ ७४ अनुसन्धान ४४ छेहली वयइ दीक्षा लीधी. ॥२४॥ १३-छद्मस्थकाल - वाससहस्सं १ बारस २ चउद्दस ३ अट्ठार ४ वीस ५ वरिसाई । मासा छ ६ नव ७ तिन्नि य ८ चउ ९, तिग १० दुग ११ मेकग १२ दुगं च १३ ॥२५॥ १३-२४ना छद्मस्थकाल कहइ छइ. एक हजार वरसनो ऋषभदेवनो. बार वरस बीजानो, १४ वरस छदमस्थपणो ३, १८ वरस ४नो, वीस वरसनो छद्मस्थपणओ पांचमानइ, छ मासनो, नवमासनो, त्रिणि मासनो, च्यार मासनओ, त्रिणि मासनओ, बि मासनो, एक मासनओ, दोय मासनो छद्मस्थपणो १३ नइ. ॥२५॥ ति १४ दु १५ एक्कग १६ सोलसगं १७ वासर तिन्नि य १८ तहेवहोरत्तं १९ । मासिक्कारस २० नवगं २१ चउप्पण्णदिणं य २२ चुलसीई २३ ॥२६।। ३ मासनो २, मासनओ, एक मासनओ, सोलइ मासनओ, त्रिणि दिननओ, तिमज एक दिननओ, मास इग्यारनो छद्मस्थपणओ, नव मासनो, चउप्पन दिननओ, चउरासी दिननओ. ॥२६।। तह बारसवरिसाइं २४ जिणाण छउमत्थकालपरिमाणं । उग्गं च तवोकम्मं विसेसओ वद्धमाणस्स ॥२७|| तथा बार वरसनओ छद्मस्थपणओ महावीरदेवनओ. ए २४ जिननओ छद्मस्थपणाना कालनओ प्रमाण कहाओ. उत्कृष्ट तप कीधो विशेष थकी वर्द्धमानजिननो तप जाणिवओ. ॥२७।। १४-केवलोत्पत्तिवेला तेवीसाए नाणं उप्पन्नं जिणवराण पुव्वन्हे । वीरस्स पच्छिमन्हे पमाणपत्ताए चरिमाए ॥२८।। १४-केवलज्ञान केणी वेलाइं उपनो ते कहइ. प्रथम तेवीस जिननइ केवलज्ञान ऊपनो बि पुहर पहिला. श्रीमहावीरनइ बि पहर पछी ज्ञान ऊपनओ. पुरुषप्रमाण प्राप्त चरमपोरसीइं ऊपनो. ॥२८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126