Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४४
कोई उल्लेख नथी. आ सूत्र जेकोबीना ध्यानमां न आव्युं अने घणा समय सुधी उपेक्षित रह्युं तेनुं प्रायः आ ज कारण छे.
दीघनिकायमां बीजा क्रमे आवतुं सामञ्ञफलसुत्त, जो के उपरोक्त बन्ने सुतो करतां पूर्वतन लागे छतां तेवुं कदाच नथी. कारण के, आ सुत्त, पश्चात्तापथी बुद्ध पासे आवता पितृघातक राजा अजातशत्रुना सन्दर्भमां रचायुं छे. अने आ घटना तो बुद्धना जीवनना छेल्लां दशेक वर्षोमां घटी होय तेवुं जणाय छे.
प्रथम सीहनादसुत्तमां कस्सप नामे तपस्वी बुद्ध पासे आवीने पूछे छे के, 'शुं साचे ज बुद्ध तपश्चर्यानी उपेक्षा तथा गर्हा करे छे ? अने जुदां जुदां केशलुञ्चन, नग्नता, भिक्षाचर्या व कष्टकर जीवन जीवता श्रमणो जे श्रमणचर्या आचरे छे तेमां दोष जुए छे ?' आ संवादना छेडे बुद्ध निग्रोधनो उल्लेख करे छे के जे कस्सप जेवुं ज कष्टमय जीवन जीवतो हतो, तेणे ज्यारे बुद्धने जीवनना उच्च प्रकारना तप विशे प्रश्न पूछ्यो त्यारे पोते तेने पोतानो मत समजाव्यो हतो. बुद्ध कस्सपने पण ते बधां कष्टोनी व्यर्थता समजावे छे अने अष्ट आर्य सत्योनो उपदेश आपे छे. ते सांभली कस्सप बौद्ध भिक्षु बनी अर्हत-पद पामे छे. 'तपस्वी निग्रोधने पोते मळ्या हता' एवा बुद्धना शब्दो पर टीका करतां बुद्धघोष दीघनिकाय - अट्ठकहामां कहे छे के, 'ते निग्रोधनो वृत्तान्त उदुम्बरिकासीहनादसुत्त मां सङ्गृहीत थयेलो छे.'
अतिकठिन श्रमणचर्याने पाळनारो निग्रोधनामक परिव्राजक पोताना विशाल शिष्यगण साथे उदुम्बरिकोद्यानमां वसतो हतो. एक दिवस बुद्धने वन्दन करवा जतो एक बौद्ध उपासक मार्गमां निग्रोध पासे गयो अने तेनी सभामां तेणे बुद्धनी प्रशंसा करी. त्यारे निग्रोधे कह्युं के - 'ते (गौतम) तो एकान्तमां छुपाईने रह्यो छे. जो ते जाहेरमां आवीने मारी साथे वाद करे तो ते खुल्लो पडी जशे . ' बुद्धे पोताना अतीन्द्रिय ज्ञानथी आ हकीकत जाणी अने पोते ज तेना स्थानमां उपस्थित थया. निग्रोधे बुद्धने कठोर तप विशे, शिष्योनी तालीम विशे, शुद्धधर्म विशे पृच्छा करी. त्यारे बुद्धे तेने जे प्रतिभाव आप्यो ते आपणी चर्चामां उपयोगी छे.
'निग्रोध ! तुं मने तारा पोताना सिद्धान्तों विशे,
बुद्धे तेने कह्युं के
१. दीघनिकाय १:१७६ ।
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