Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
११६
अनुसन्धान ४४
अने ते अनुष्ठानोनी व्यर्थता पण जोई छे. अट्ठकथा चातुयाम संवर विशेना बुद्धना आवा असामान्य विधान माटे पण आने ज स्पष्टतया कारण माने छे. चातुयाम संवर सम्बद्ध सूत्रनी टीका करतां बुद्धघोष अट्ठकथामां कहे छे के -
'भगवाने आ जे कयुं छे ते तीथिकोना मते कडुं छे. तीथिको माने छे के - लाभ अने पूजा सत्कार वृक्षनां पर्णो जेवा छे, पांच व्रतो- पालन ते वृक्षना थड समान छे, अष्टविध ध्यानाभ्यास ते वृक्षनी त्वचा जेवो छे, पूर्वभवोनुं ज्ञान (अभिन्न) वृक्षनी शिराओ जेवू छे, दिव्य चक्षुः ने तेओ (तीथिको) अर्हतपणानुं उत्तम फल माने छे, तेथी तेनी प्रासि ते वृक्षना सार समान छे.'
परन्तु बुद्धना शासनमां तो, लाभ तथा पूजादि वृक्षनां पर्णो जेवा छे, नियमो वृक्षना काष्ठ (थड) जेवा छे, ध्याननिष्पत्ति ते वृक्षनी त्वचा जेवी छे, पूर्वज्भवोनुं ज्ञान वृक्षनी शिरा जेवू छे, परन्तु वृक्षनो खरो सार तो पवित्र मार्ग अने ते मार्गनुं फल - निर्वाण छे.२
अट्ठकथामां चातुयाम संवरनुं अध्यारोपण तीथिको पर कर्यु छे ते घj साकूत छे. सामञफलसुत्तमां तीथिको तरीके श्रमणोना छ अतिप्रसिद्ध सम्प्रदायोनुं वर्णन करवामां आव्युं छे. अहीं जे तीर्थिक शब्दनो उपयोग कर्यो छे ते तो निःशङ्कपणे नातपुत्तना नेतृत्ववाला निर्ग्रन्थोने उद्देशीने ज को छे, कारण के तेमना सिवाय बीजा कोई तीथिकोए चातुयाम संवरनुं निरूपण कयुं नथी.
निग्ग्रंथो (अर्थात् तीथिको) दिव्यचक्षुः नामक पूर्वोक्त अलौकिक सामर्थ्यने अर्हतपणुं माने छे एवं बौद्धोनुं विधान, वर्तमानकालीन जैनोनी जेम, निर्ग्रन्थोए पोते ज अवश्य नकारी काढ्युं होत. अहीं, बौद्धो पोताना प्रतिपक्षी श्रमणोनुं वर्णन करी रह्या छे अने तेओ तेमनी यौगिक क्षमताओने पोताना सिद्धान्तोना प्रकाशमां जोवा माटे बन्धायेला छे ए वातने बाजु पर राखीए तो; ए जोर्बु उचित थई पडशे के कोईक जैन आगमपाठे तेमने आq विधान करवा प्रेर्या होय. मने लागे छे के कल्पसूत्रनो एक फकरो (आचाराङ्ग सूत्र २-१५२६ नुं ज प्रायः प्रतिबिम्ब) भगवान महावीरे प्राप्त करेल अर्हतपणाने वर्णवे छे -
'ज्यारे श्रमण महावीर जिन थया, अर्हत थया त्यारे तेओ केवली थया,
१-२. दीघनिकाय-अट्ठकथा ३:५४-५७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126