Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 89
________________ अनुसन्धान ४४ नव सय कोडि सागर सुपार्श्व सातमा तीर्थंकर थकी ऊपना. चंद्रप्रभ आठमा तीर्थंकर प्रभाई करी प्रकास करता हूया त्रिणि लोकनइ. ॥६६।। नउईहिं कोडीहिं ससीओ सुविही जिणो समुप्पन्नो । सुविहि जिणाओ नेवहिं कोडीहिं सीयलो जाओ ॥६७।। नेऊ कोडि सागरे चंद्रप्रभ थकी सुविधिनाथ तीर्थंकर हूया. सुविधिनाथ थकी नव कोडी सागर सीतलनाथ हूया. ॥६७|| सीयलजिणाओ भगवं सिज्जंसो सागराण कोडीए । सागरसयऊणाए वरिसेहिं तहा इमेहिं च ॥६८।। सीतलनाथ जिन थकी भगवंत श्रेयांस कोडि सागर ते मध्ये एतला ऊणा कीजइ. एकसओ सागर अनइ वरस केतला ते आगलि कहिस्सइ. ॥६८।। छव्वीसाए सहसेहिं चेव छावट्ठिसयसहसेहिं । एएहिं ऊणिया खलु कोडीमग्गिलि(ल्लि)या होइ ॥६९॥ छव्वीस हजार वरसे ऊणा वली बासठि लाख वरसे करी एतले वरसे ऊणा निश्चइ कोडि १ सागर पूर्वलानो अंतरो होइ. ॥६९।। चउप्पन्ना अयराणं सिज्जंसाओ जिणाओ वसुपुज्जो । वसुपुज्जाओ विमलो तीसहि अयरेहिं उप्पन्नो ॥७०।। चउपन्न सागर अंतरो श्रेयांसनाथ थकी जिन वासुपूज्य हूवा. वासुपूज्य थकी विमलनाथ त्रीसे सागरे ऊपना. ॥७०।। विमलजिणो उप्पन्नो नवहि य अयरेहिं णंतई जिणाओ । चउसागरनामेहि अणंतईओ जिणो धम्मो ॥१॥ विमलजिन थकी ऊपना नव सागरे अनंतनाथ जिन हूया. चिहुं सागरे अनंतनाथ थकी धर्मनाथ हूया. ॥७१।।। धम्मजिणाओ संती तिहिओ तिचउभागपलियऊणेहिं । अयरेहिं समुप्पन्नो पलियद्धेणं तु कुंथुजिणो ।।७२।। धर्मनाथ थकी शांतिनाथ पल्यना ४ भाग करीइं तेमांहि लइ एक चउथि भाग ऊणो एटलिं कुणो पल्यनो तीन सागर अनइ, एतले सागर ऊपना शांतिनाथ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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