Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 57
________________ अनुसन्धान ४४ ते धन्ना जेहिं तुमं विहरंतो भारहमि वासंमि। हरिसभरनिब्भरेहिं पलोइओ नयणनलिणेहिं ॥ ४ ॥ सिरिपुंडरीयगणहर ! भुवणस्सवि मणहरं तुह सरूवं । अहवा अमियस्स रसो किं कस्स न सुंदरो होइ ! ॥ ५ ॥ रविणा करनियरेणं सयलंपि पयासियं जहा भुवणं । सिरिपुंडरीय गणहर ! तह नाणेणं तए वि जयं ॥ ६ ॥ तुह चंदसियगुणोहं सुमरंताणं मणंमि अम्हाणं । सिवरमणीवच्छयले विलसंतो देसि आणंदं ॥ ७ ॥ जे पुंडरियतवेणं तुम्हं आराहयंति पयपउमं । ते सुरभवणे रज्जं मोक्खंपि लहंति अन्नभवे ॥ ८ ॥ एत्थ पुणो सोहग्गं आरोग्गं पवरपुत्तसंपत्ती । सयलजयवल्लहत्तं लहंति मणवंछियं सयलं ॥ ९ ॥ इय संथुयपायपउम ! नाह ! तुह पुंडरीय ! गुणकमले । मज्झ मणरायहंसो आसंसारं लहउ हरिसं ॥ १० ॥ छ । (२२) श्री अणहिलपुर (कुमरनरिंद) रथयात्रा स्तवन सिरिचरिमतित्थनाहं पणमिय सिवरमणिकंठवरहारं । हरिसभरनिब्भरंगो जिणरहजत्तं थुणिस्सामि ।। १ ।। जिणसासणभवणसिरे छज्जइ जत्ता रहस्स कलसोव्व । आणंदं वियरंती वयणाणमगोयरं संघे ॥ २ ॥ जिणसासणपरममहो ! जिणसासणउन्नई इमा पवरा । जिणसासणवद्धावणमेयं जिणसासणे सारं ॥ ३ ॥ जिणसासणनवणीयं जिणसासणजीवियं इमं परमं । जं कीरइ रहजत्ता संपइरन्ना जहा पुट्वि ।। ४ ॥ छत्तनिरंभियरविकर-नरिंदपमुहेहिं नायरजणेहिं । तह विहिया रहजत्ता जह जाओ जयचमुक्कारो ।। ५ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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