Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ जून २००८ मोहमल्ल निम्महण कुमयमयगलपंचाणणु उवसमअमियपवाहु हरिसफुल्लह वरकाणणु । संवेगद्दुमपढमकंदु गुणकुमुयसुहायरु जणमणचितियकामधेणु दुहतिमिरदिवायरु ॥ निसुत जइत्थुवि भवियजण अच्छहि विलसिर सिद्धिसुहि सा धम्मसूरि - देसणलहरि वन्नि कु सक्कइ एक्कमुहि ॥ ८ ॥ पुहइपुरंदर हिययमोरनच्चण घणु नज्जइ गुणगणमणिरोहणगिरिंदु बुहयणिहि सुणिज्जइ । सज्जण जणमणजलहिचंदु जगि पयडु मुणिज्जइ भवियनलिणबोहणदिणिंदु जो महियलि गिज्जइ ॥ तसु धम्मसूरि हं तुयचरण पउमनाह वन्नेवि किह ओ जहं जगि कित्ति समुच्छलिय महमहंत कप्पूर जिह ॥ ९ ॥ छ ॥ छ ॥ 208 (३४) श्री शासनदेवी स्तोत्रम् चवीसंपि जिणिंदे वंदिय आणंदनिब्भरमणेणं । सासणदेवि थुणिमो जणणि पिव सयलसंघस्स ॥ १ ॥ नीसेसविग्घसंघ सिग्धं संघस्स हरउ कुणउ सिवं । एसा सासणदेवी अतुलबला विजयविक्खाया ॥ २ ॥ सीसे मण (सीसगण ?) संजुयाणं अम्ह गुरूणं विसेसओ संतिं । कालं सासणदेवी समायरउ ॥ ३ ॥ स धम्मपभावणहेउं अपुत्तमहिलाण पुत्त हिया समाणा सासणदेवी कुणइ नूणं ॥ ४ ॥ कप्पूरागुरुकुंकुमसुगंधपुप्फाइपूइया संती । मोयगनिघरं दाउं सक्कारिय पवरवत्थेहिं ॥ ५ ॥ जो जं पत्थइ वत्थं दुल्लहलंभंपि तिहुयणे सयले । सासणदेवी विहरइ भत्तिसणाहस्स तं तस्स ॥ ६ ॥ Jain Education International - ६५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126