Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून २००८
त्रैलोक्यं सकलं मया प्रतिकलं दृष्टान्तमन्वेषितुं देव ! त्वद्गुणवर्णनां विदधता विस्फारितं मानसम् । एकस्यापि गुणस्य तत्त्वतुलया लेभे क्वचिन्नोपमा हर्षात्सर्वमिदं विलंघ्य गदितं शंखेश्वरस्थ प्रभो ! ॥ १० ॥ संस्तुत्येत्थमसौ जिनेश्वर ! तव श्री पार्श्व ! पादाम्बुजं स्वीयस्वान्तसमुत्थदौस्थ्यदलनैः सद्भावगर्भः पदैः। विश्वं शर्मपदं नयेति निगदन्नभ्यर्थनासार्थकं मूर्धानं भुवि सन्निधाय नमति श्रीरत्नसिंहप्रभुः ॥ ११ ।। छ ।
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(३३) श्री धर्मसूरि छप्पय श्रीधम्मसूरिचंदो सो नंदउ चंदगच्छ गयणंमि । निय जसजोन्हापसरेण जेण धवलीकयं भुवणं ॥ १ ॥ कामकरडिघडवियडकुंभविहडणपंचाणणु मुणियसत्थपरमत्थु वीरतित्थह वित्थारणु । सयलतक-साहित्त-कव्व-लक्खणिहि सुनिच्चलु पयड पठल पडिवक्ख दप्प कप्परण सुपच्चलु ॥ जो सीलसूरि वर गणहरह गरुयगच्छवित्थारकरु सो धम्मसूरि इह चिर जयउ निम्मलगुणपब्भारधरु ।। १ ।। किं सुरकरि गुलगुलइ पहु ! सग्गह अवयरियउ किं सुम्मइ दुंदुहिनिग्घोसु इहु जगि वित्थरियउ। किं सायरु धडहडइ एहु बहिरंतदियंतरु किं गलगज्जइ सजलु एहु अहिणवु धाराधरु ।। छणचंदकुंदकप्पूरसमु कित्तिनियंबिणिकेलिगिहु । हुं नाउ नाउ देसणह भरि धम्मसूरिमुणिरायु बुहु ।। २ ।। जिणरि दलिवि वद्दियहं दप्पु जयसिरि अवमंडिय जिणरि कुतित्थियसत्थकंति तक्खणि फुडु खंडिय ।
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