Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 68
________________ जून २००८ ६१ खोणि-सरोवरि किं सयवत्तू कप्पतरू कि जु सूसमवुत्तू । हुं इहु राणिय वंमह पुत्तू संखपुरेसरि पासु निरुत्तू ॥ ३ ॥ संखपुरेसरि पासु वसंतू जा मण काणणि हू विलसंतू । तं वणु तेव फलिं वियसंतू जोइ ज नंदुणु तं पि हसंतू ॥ ४ ॥ संखपुरेसरि पासु जु वनं पच्छिमसंमुहु तं न हु मन्नं । माणस जिं न त दिट्ठ अदंनं जं वरि देव न तुज्झु रवन्नं ॥ ५ ॥ संखेपुरे सिरिपासह थोत्तु, जंपइ निम्मल भत्ति जु जुत्तू । तासु वियक्खणु जायइ पुत्तू मंडइ जो गुणवग्गिण गोत्तू ॥ ६ ॥ देउ गुरू किर भत्तिय तोसं, चिंतिउ एउ ज तं पुण पोसं । संखपुरेसरि पासु विसेसं, जाणइ अंतु न कोइ असेसं ।। ७ ॥ संखपुरेसर मंडण देवा, पास जिणेसर तुह कय सेवा । हं जडु सक्कु न जंपिसि लोया, भत्ति परायण नच्चहु लोया ॥ ८ ॥ रतनसिंह मुणीसरु देवा, थुत्ति तुम्ह करेप्पिणु सेवा । जंपइ अज्जवि अम्ह उमाहा, जांहि न दंसणि नो पणमेवा ॥ ९ ॥ छ । o (३२) श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र यस्त्रैलोक्यगतं ततं गुरुतमःस्तोमं निहन्तुं क्षमः प्रौढातङ्कभृतां नृणां जिनपतिस्तापं विलुप्य क्षणात् । सर्व्वस्याऽमृतपूरपूरणरति विस्फारयन्नेत्रयोनव्यः शंखपुरेश्वराम्बरमणिः कुर्यात्स वः कामितम् ॥ १ ॥ अत्यन्ताद्भुतसंमदाम्बुदततिप्रोद्भूतरोमाङ्करैदृष्टे यत्र बभूव [नेत्र?]वसुधा सत्पुण्यपुष्पाञ्चिता। . श्रीशंखेश्वरमण्डनैकतिलकः कुर्वन् वसन्तोत्सवं स श्रीपार्श्वजिनेश्वरः स्फुरतु नः स्फूर्जन् मनःकानने ॥ २ ॥ येन त्वं स्मृतिमात्रतोऽपि मनसा ध्यातः प्रभो ! सादरं कुर्वाणेन गिरा स्तुति निरुपमां बाष्पोम्मिलक्ष्यां स्फुटम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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