Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून २००८
(२९) श्री संखेश्वर पार्श्व स्तवनम्
सिरि संखेसर संठिय! निट्ठियकम्मट्ठगंठि ! पहु ! पास ! | नियकिंकरस्स मज्झं, विन्नत्तिं देव ! निसुणेहि ॥ १ ॥ रन्नंमि सग्गसरिसं, पड़िहासइ सयलभुवणवलयस्स । जत्थच्छरियनिहाणं, दीससि तं पास ! सुहवास ! ॥ २ ॥ संखेसरंमि पासो वासो सुसिणिद्धफलसमिद्धीए । कलिकालमरुमहीए, समुग्गओ कप्परुक्खोव्व ॥ ३ ॥ आणंदामयसारणि-तुल्लो मह मणकियारभूमीए । संखेसरम्मि पासो पसरतो वंछियं देउ ॥ ४ ॥
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जइ निरुवममणपसरो तुह पयकमलंमि पइखणं होज्जा । दूरेवि तस्स ता जिण ! अचितचिंतामणी सिद्धो ॥ ५ ॥ जं होसि पहु ! पसन्नो दुत्थियदुहियाण रोयविहुराण । करुणारसमयरहरो अज्जवि तं पास ! दीसिहसि ॥ ६ ॥ रणझणिरकणयकंकण - विप्फारियकरयलाहिं रमणीहिं । नच्चंतीहिं य मग्गो न हु लब्भइ पास ! तुह भवणे ॥ ७ ॥ लद्धूण पुत्तजम्मं विलसिरआणंदवियसियच्छीओ । तियसाण वि सुहजणयं काउ वि गायंति महुरसरं ॥ ८ ॥ भवजलहिपाणतुल्लो तिहुयणउद्धरणलग्गणाखंभो । सयलमणोरहपूरण-ठाणं तं चेव पास ! जए ॥ ९ ॥ को वन्निरं त पढिमं संखेसरंमि तुह पास ! । जीहासहस्सजुयलं जइवि धरेज्जा अहिवइ- ॥ १० ॥ - निद्धम्माचारवंदिय अनायवंताण दुट्ठहिययाण । संखेसर पास ! तुहं नामं पि हु सासणं कुणइ ॥ ११ ॥ जिणसासणभत्ताणं सरलसहावाण सुद्धहिययाणं । संखेसरपास ! तुहं नामं पि हु वंछियं देइ ॥ १२ ॥ इय रयणसिंहसूरी संखेसरनयरभूसणं पासं ।
पत्थइ थोऊण इमं तिजयस्सवि कुणसु कल्लाणं ॥ १३ ॥ छ ॥
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2008
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५९
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