Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 65
________________ ५८ (२८) श्री संखेश्वर पार्श्व स्तवनम् जय जय संखेसर तिलय देव, जगु सउ वट्टइ तुहतणिय सेव । विणु भत्तिहि तूसइ कसुवि नेव, तुट्ठउ पुणु जिव मणु देहि तेव ॥ १ ॥ संखेसरसंठिय पाससामि, वियलंति दुरिय तुहतणइ नामि । तहं धण कण कंचण तुरय धामि, हुंति जि झायहिं पई हंसगामि ॥ २ ॥ सुणि आससेण - नरवइहि पुत्तं, संखेसरमंडण मज्झ वृत्त । भवि भवि मग्गंतु तुम्ह पाय, संसारि न लग्गहिं जिंव आ (अ) पाय ॥ ३॥ कलिकालि असंभवु जसु पहाव, जग हवि उप्पायइ सुकु विभावु । कसुविन भावइ धरिहि वासु, संखेसरि वंदिउ जा न पासु ॥ ४ ॥ हं मन्नं किंपि न कप्परुक्खु, चिंतामणि वियरइ तं न सुक्खु । दुहुं लोयह दूरि खिवेवि दुक्खु, संखेसरि पासु जु दिंतु मोक्खु || ५ || हलिउ लोउ वंदणह रेसि, चउसुवि दिसासु सव्वहिं विदेसि | अवरुप्परु जंपइ मइ वि नेसि, हअच्छ पउणउ कियइ वेसि ॥ ६ ॥ आवंति न लब्भइ मग्गु लोइ, संखेसरि पासह भवणि जोइ । गायंतइ नच्चिरि उद्धबाहु, पइसिवि पुज्जिज्जइ पासनाहु ॥ ७ ॥ कप्पूर कथूरिय कुंकुमेहिं, कई किज्जइ सव्विहिं कारिमेहिं । निक्कारिम एक्क जि भत्ति होइ, तो तुरियं वंछिउ हुंतु जोइ ॥ ८ ॥ सउं भत्तिण जइ पुणु पूय होइ, जा कत्थवि दीसइ नेव लोइ । तो तसु उवमाणु न देइ कोइ विलसंतउ भवियणु गुरु पमोइ ॥ ९ ॥ किवि मग्गहिं चंग सलोणनयण, किवि वंछहि कामिणि चंदवयण | किवि पुणु पत्थहिं वरपुत्तरयण, किवि ईहहिं सिवसुहु भत्तिपवण ||१०|| जइ कहवि निरंजण एक्कभत्ति, ता सयलु समीहिउ होइ झत्ति । माणुसह परिक्खइ देउ सत्ति, तउ कुणइ सयल तसुतणिय तत्ति ॥ ११ ॥ सिरि धम्मसूरि गणहरहसीसु, सिरि रयणसिंह मुणिगणहईसु । अनुसन्धान ४४ न मुणइ थुणंतु निसि तह व दीसु, पासु सु निम्मलु जिंव रवि अभीसु ॥ १२ ॥ इय संखेसर पुरि विहियवासु, संपूरियतिहुपणसयलआसु । हं मग्गं एत्तिउ एक्कु पासु, महु निच्चवि वियरउ अप्पपासु ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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