Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 56
________________ जून २००८ ४९ सच्चिय जीहा जीहा जा तुह थोत्ते समुज्जया नाह ! । तं चिय भालं भालं जं पयकमलं तुह नमेइ ॥ १९ ।। मेरुपि व अइगरुयं खमाहरं देव ! तं धरं ठावि । जं संसारसमुदं तरंति भविया तमच्छरियं ॥ २० ॥ हिययजलहिमि सामिय ! जाण तुमं मंदरोव्व परिभमिओ। भावणअमियं जावइ निरुवमसुहकारणं ताण ॥ २१ ॥ पई दिने जयबंधव ! जं मह जायं मणंमि किंपि सहं । तं मोक्खंमि वि होही ई मह हिययं न सद्दहइ ।। २२ ।। तुह पयकमलनिरूवण-निच्चुज्जुयमाणसो अहं सामि ! । नयणनिमेसंपि तया मन्ने विग्धं समोइन्नं ।। २३ ।। जेहिं तुमं गुणसायर ! धरिओ हियए खणंपि सद्धाए । ते वि हु हुंति कयत्था आजम्मं किं पुण थुणंता ॥ २४ ॥ तुज्झ सरूवे नाए संपत्ते नाह ! दंसणे तह य । तं एगं मह मोत्तुं अन्नत्थ मणं न हु रमेइ ।। २५ ॥ एसा तियलोयलच्छी एसोच्चिय मह महसवो परमो। जं पयकमलं सामिय ! भमरेण व तुह मए दिटुं ।। २६ ॥ इयु रयणसिंहसूरीहिं संथुयं जे थुणंति नेमिजिणं । ते दुत्तरभवसायरपारं पाविय लहंति सिवं ॥ २७ ॥ छ ॥ छ । (२१) श्री पुण्डरीकगणधर स्तोत्र पणमिय पढमजिणिदं सीसं तस्सेव सयलजयपयडं । अगणियमंगलनिलयं पुंडरियं गणहरं थुणिमो ॥ १॥ जेण इह भरहखेत्ते चउदस पुव्वाइं भवियकुमुयाणं । पढमं पयासिऊणं चंदेण व वियरिओ हरिसो ।। २ ॥ तं भरहचक्कवइणो पुत्तं कोडीहि पंचहि समेयं । सेत्तुज्जे सिद्धिगयं पुंडरियं गणहरं वंदे ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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