Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 43
________________ अनुसन्धान ४४ (१५) आत्महित चिन्ता कुलक नियगुरुपायपसाया नाउं संसारविलसियविवागं । सम्मं विरत्तचित्तो अप्पहियं किंपि चिंतेमि ।। १ ।। कालोच्चिय जिणआणं काउं तन्हालुयस्स मह सययं । हा जिय ! पमायवेरी न देइ धम्मुज्जमं काउं ।। २ ।। जइ एवं सामग्गि धम्मे लहिऊण कहवि हारेसि । ता तं पच्छायावा विहलं विलवेसि परलोए ॥ ३ ॥ रागंधो मोहंधो कज्जाकज्जं न याणसि हयास !। धत्तूरभामिओ इव सव्वं पेच्छसि सुवनमहो ।। ४ ॥ वेरग्गमग्गलीणं खणमेगं जइ करेमि अप्पाणं । चंचलचित्तेण पुणो विहलिज्जइ ही नियंतस्स ॥ ५ ॥ एक्को चेव दुरंजो नियचरियं जो वियाणई अप्पा। सो ताव रंजियव्वो जइ इच्छसि साहिउं धम्मं ॥ ६ ॥ जइ इच्छसि अप्पसहं खिन्नोसि दहाण तो कुण उवायं । मा कोद्दवे ववंतो सालीण गवेसणं कुणसु ।। ७ ।। जं आसि धम्मबीयं पुव्वभवे वावियं तए जीव ! । तं इह लुणासि संपइ वावियमिहि लुणसि अग्गे ॥ ८ ॥ इय नाऊण अकज्जं दूरे वज्जेसि किं न हु अणज्ज ! । अह कालपासबद्धो जुत्ताजुत्तं कह मुणेसि ? ॥ ९ ॥ इंदियचोरेहिं अहं मा भवरन्नमि भणसु जं मुसिओ। जाणिय चोरेहिं तुम जो गहिओ तस्स किं भणिमो ? ।। १० ॥ परजणरंजणहेउं भणेसि अन्नं करेसि अवरं च। । तत्थवि पयडं कवडं हा ! दीसइ तुज्झ सव्वत्थ ।। ११ ।। लहुएवि धम्मकज्जे तइया साहूहिं चोइओ संतो। असमत्थो भणिय ठिओ अहुणा सोएसि किं तम्हा ? || १२ ॥ चिट्ठइ राई, पासइ न कोइ, हवउ जह तह वणुट्ठाणं । इय मूढ ! लोयरंजय ! कुणमाणो किं पि न लहेसि || १३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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