Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून २००८
३७
गुणिएसु मच्छरित्तं वहसि पओसं च निग्गुणजणम्मि । पररिद्धीए तम्मसि परिपरिवायं तह करेसि ॥ १४ ॥ निच्चं पमायसीलो सुहाभिलासी य चोइओ कुवसि । सोहग्गमंजरी जं अप्पंमि तहावि बहुमाणो । १५ ।। इय सयलं जाणेमी काउंन तरामि भणसि गुरुकम्मो । कंठ-मण-सोसणेणं धिरत्थु तुह मूढ ! नाणेणं ॥ १६ ॥ अज्जं करेमि कल्लं करेमि धम्मुज्जमं तुमं भणसि । इय निप्पलवंच्छाहिं समप्पिही जम्मपरिवाडी ।। १७ ॥ पेच्छंतो पच्चक्खं जियलोयं जीव ! इंदि(द)यालसमं । ठगिओ इव धुत्तेहिं हा चेयसि किं न अप्पाणं ? ।। १८ ।। सउणाणं जह रुक्खे पहियाणं जह य देसियकुडीरे । मेलावगो अणिच्चो मणुयाणं तह कुडुंबंमि ।। १९ ॥ अज्जवि किंपि न नटुं जइ चेयसि हंदि किंपि अप्पाणं । विलवणमेत्तठिओ पुण अरनरुन्तं समायरसि ॥ २० ॥ सुणहाई तिरिया वि हु भोए भुंजंति भोयणं तह य । एरिसचरियनराणं को संखं कुणइ पुरिसेसु ॥ २१ ॥ जे एवं जंपंती पमायवेरिं छलेह भो लोया ! । ते वि छलिज्जंति जया तया अहं तस्स किं काहं ? ॥ २२ ॥ बाहुल्लेणं लोओ पेच्छइ नयणेहिं नेव हियएणं । तेणं विसएहिंतो कहं विरत्तो कुणउ धम्म ! ॥ २३ ॥ एयाए दुम्मईए माहप्पं भंजिऊण रे जीव ! । धम्मारामे रम्मे उज्जमदक्खाफलं चरसु ।। २४ ।। गुरुआणाए सम्म परोवयारंमि संजमे नाणे । खाओवसमियभावे सयावि एएसु उज्जमसु ॥ २५ ।। एयं खु धम्मरज्जं कहमवि लभ्रूण गणिय दियहाई । सपरोवयारहीणो खणंपि मा सुयह वीसत्थो ।। २६ ।। अह एत्तियभणिएण वि होइ अहं जाण (अहम्माण ?) को गुणो भणसु । असुई मुत्तूण किमी अन्नत्थ रइं किह करेइ ? ।। २७ ।।
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