Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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४०
अनुसन्धान ४४
संपइ सत्थसरीरे सुमरंति न जीव ! पुव्वदुक्खाई। कहिएसु न उव्वेओ कह होसि तं न याणामि ॥ २२ ।। जाणियतत्तंपि मणो धारिज्जइ दुक्करं सरलमग्गे । दुक्खं खु सिक्खविज्जइ एसो अप्पा दुरप्पा हु ॥ २३ ।। आवडिए जिय ! दुक्खे जाणसि किर सुंदरो हवइ धम्मो । संपइ पुण गयधम्मो परलोए होसि अहह ! कहं ।। २४ ।। इंदियलोलो को वि हु वट्टइ सद्दाइएसु विसएसु । तहवि हु न होइ तित्ती तन्हच्चिय वित्थरइ नवरं ॥ २५ ।। इंदियधुत्ताण अहो तिलतुसमेत्तं पि देसु मा पसरं । अह दिन्नो तो नीओ जत्थ खणो वरिसकोडिसमो ॥ २६ ॥ धत्तूरभामिओ इव ढगचुन्नेणं व चुन्निओ संतो । भूएण व संगहिओ वाएण व दिट्ठिमोहेणं ॥ २७ ॥ जह एए अवरेहिं जुत्तिसहस्सेण पन्नविज्जता । ताणं चिय गहिलत्तं अवियप्पं वाहरंति सया ॥ २८ ॥ तह रागाइवसट्टो न मुणसि थेवंपि कज्जपरमत्थं । अह मुणसि तो पयंपह चरिएणं कहवि संचयसि ।। २९ ।। दुग्गंधअसुइपुन्नो वाहिं सव्वत्थ चिन्तिओ करगो । पटुंसुयनत्तणयं दाउं पिहिओ य पुप्फेहिं ।। ३० ॥ दिट्ठो हरेइ चित्तं गंधो असुईए सरइ तं चेव । मूढो वि तं न गहिउं कुणइ मणं किं पुण विवेगी ।। ३१ ।। एवं चिय नारीसुं वत्थालंकारभूसियंगीसु । आवायमेत्तरूवं पेच्छिय तत्तं विभावेसु ॥ ३२ ॥ असुईए अट्ठीणं लोहिय-किमिजाल-पूत-मंसाणं । नामपि चिंतियं खलु कलमलयं कुणइ हिययंमि ॥ ३३ ॥ पच्चक्खमिणं पेच्छह वन्नियमेत्तं तु जइ न पत्तियह । एक्कारससोएहिं नीहरमाणं सया चेव ॥ ३४ ॥ इय तत्तभावणगओ सयावि मणनिग्गहं करेमाणो । पच्चक्खरक्खसीणं नारीण न गोयरो होसि ॥ ३५ ॥
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