Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 50
________________ जून २००८ x3 मा पुण एगं पुच्छिय कुज्जा दो तिन्नि अवरकिच्चाई । लहुएसु वि कज्जेसुं [ए] सा मेरा सुसाहूणं ।। १७ ।। काउं गुरुंपि कज्जं न कहिचिय पुच्छि[या] विगोविति । जे उण एरिसचरिया गुरूकुलवासेण किं ताण ? ॥ १८ ॥ जोग्गाजोग्गसरूवं नाउं केणावि कारणवसेण । सम्माणाइविसेसं गुरुणो संति सीसाणं ॥ १९ ॥ एसो सया विमग्गो एगसहावा न हुंति जं सीसा । इय जाणिय परमत्थं गुरुमि खेओ न कायव्वो ॥ २० ॥ मा चिंतह पुण एयं किंपि विसेसं न पेच्छिमो अम्हे । रत्ता मूढा गुरुणो असमत्था एत्थ किं कुणिमो? ॥ २१ ।। रयणपरिक्खगमेगं मुत्तुं समकंतिव्व न(वन्न)रयणाणं । किं जाणंति विसेसं मिलिया सव्वेवि गामिल्ला ? ।। २२ ।। एयं चिय जाण मणो ते सीसा साहयंति परलोयं । इयरे उव(य)रं भरिउं कालं वोलिति महिवलए ॥ २३ ।। एयं पि हु मा जंपह गुरुणो दीसंति तारिसा नेव । जे मज्झत्था होउं जहट्ठियवत्थु वियारंति ॥ २४ ॥ समयाणुसारिणो जे गुरुणो ते गोयमं व सेवेज्जा। मा चिंतह कुविकप्पं जइ इच्छह साहियं(उं) मोक्खं ॥ २५ ॥ वक्क-जड़ा अह सीसा के वि हु चिंतंति किंपि अघडतं । तहवि हु नियकम्माणं दोसं देज्जा न हु गुरूणं ।। २६ ।। चक्कित्तं इंदत्तं गणहर-अरहंतपमुहचारुपयं । मणवंछियमवरं पि हु जायइ गुरुभत्तिजुत्ताणं ॥ २७ ॥ आराहणाओ गुरुणो अवरं न हु किंपि अत्थि इह अमियं । तस्स य विराहणाओ बीयं हालाहलं नत्थि ।। २८ ।। एवं पि हु सोऊणं गुरुभत्ती नेव निम्मला जस्स । भवियव्वया पमाणं किं भणिमो तस्स पुणरुत्तं ! ॥ २९ ।। साहूण साहुणीणं सावय-सड्डीण एस उवएसो । दुन्हं लोगाण हिओ भणिओ संखेवओ एत्थ ॥ ३० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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