Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 41
________________ ३४ अनुसन्धान ४४ तुह कित्तीए जउणा धवला गंगत्ति सिंधुणा भणिया । ईसालुत्तं सामिय ! ठिया वहंती खणं कुविया ॥ १० ॥ सग्गं गयंमि तुमए को अन्नो नाह ! एत्थ विउसाणं । संसय-गिरि-निद्दलणं उत्तर-दंभोलिणा काही ? ॥ ११ ॥ सिरि धम्मसूरि-जलहर ! तुह देसणमहुरनीरमलहंतो । भवियणमणबप्पीहो तिसिउच्चिय भमइ भुवणयलं ॥ १२ ॥ पई देसणं कुणंते नाह ! इमं भवियणेण विनायं । किं नयणा अह सवणा सव्वं माणिवि मह हवंतु ॥ १३ ॥ जं किंपि पियं मइ पहु ! जं किंपि हु मंगलं पि भुवणंमि । जं किंपि सलहणिज्जं तं सयलं पि हु तुमं चेव ।। १४ ।। वाणीइ कन्नपूरो देसणलच्छीइ मउड़पडितुल्लो । चरणसिरीए हारो सामि ! कया कत्थ दीसिहिसि ? ॥ १५ ।। पंचसयाइं पहरे पढिऊणं तह पवासिया पन्ना। जइ मन्निज्जइ पुवि पाठो हुँतो अलिहिओत्ति ।। १६ ।। तुह पहु ! बुहावि सीसा सन्निहिया अवहियावि अणवरयं । मूलपडिमापइट्ठा-संखं पखलंति कुणमाणा ।। १७ ।। रायसहासुं तुह पहु ! वाइंदमइंददप्पनिद्दलणो । पंचाणणपडितुल्लो जयसद्दो कस्स अवरस्स? ॥ १८ ॥ अप्पडिबद्धविहारं नाह ! कुणंतेण विविहदेसेसु । सूरेण व कमलवणं भुवणमिणं बोहियं तुमए ॥ १९ ।। सोहग्गसंपयाए किं तुम्ह कलिंमि सामि ! वन्नेमि । गोयमपहुव्व जीए पडिच्छिओ भवियलोएणं ॥ २० ॥ गच्छसमुद्दो सामिय ! तुमए तह पालिओ सुमज्जाए । जह लब्भइ निव्वाणं तम्मि भवे अहव तइयंमि ।। २१ ॥ जे सज्जणगुणहीणा जाण मुहाओ गुणो न नीहरिओ । ते वि करिति थुइं तुह इयरथुईसुं पहु ! न चोज्जं ।। २२ ।। आजम्मं पि न दिज्जे जहिं तुमं पहु ! गुणेहिं परसिट्ठो । ताणवि मणे निविट्ठो एसो च्चिय गुणिगणगरिठ्ठो ॥ २३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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