Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 39
________________ ३२ अनुसन्धान ४४ केयइ-चंपय-करुणिय-सयवत्तिय-जाइ-बउल-पुप्फेहिं । वालय-विल्लय-पाडल-पमुहेहिं कोड़िसंखेहिं ।। ६ ।। वरकप्पूराहिय महमहंत वियसंत-कुसुमनियरेहिं । नियपाणिपल्लवेहिं पूयं काहामि तुह नाह ! ॥ ७ ॥ नाणापट्टसुय-देसागय-विविहवत्थलक्खेहिं । देवाण व दूसेहिं परिहविस्सं सहत्थेहिं ।। ८ ॥ आउज्ज-गीय-नट्टाइएहिं तुह देव ! उच्छवं काउं । कप्पूरदीवियाहि काहं आरत्तियं सामि ! ॥ ९ ॥ दव्वथए वढ्तो भवियजणो जा न सेवए चरणं । ताव मणोरहवल्लिं पइदियहं नेउ सहलत्तं ॥ १० ॥ जह मह मणोरहा पहु ! तह जइ पुज्जति दइवजोएण । ता तं सुक्खं मन्ने तिजयंपि न जस्स पड़िछंदो ।। ११ ।। विहिणा देवे वंदिय भूमि तह चुंबिऊण भालेणं । भवियाण भावहेऊ इय थुणिओ रयणसूरीहिं ॥ १२ ॥ ws (१३) श्री नेमिनाथ स्तोत्र मूर्तयस्ते क्व नेक्ष्यन्ते श्रीनेमे ! त्वत्प्रभावतः । रूपलावण्यसौभाग्यै-हल्लेखैकधुरन्धराः ॥ १ ॥ मुक्तिसौख्यमनाख्येयं त्रैलोक्येऽपि शरीरिभिः । गम्यं चानुभवस्यैव यत्सिद्धैरेव वि(वे?)द्यते ॥ २ ॥ उक्तं श्रद्धीयते नान्यैः स्याद्वादात्किन्तु मन्यते । चित्रं चित्रं कथं नाथ ! तदद्य वेद्यते मया ॥ ३ ॥ त्वयि दृष्टे मनो हृष्टं नेमे ! मुक्त्वाऽन्यसंकथाम् । प्रेत्येहापि तथा याचे यथा नाथ ! ममाधुना ।। ४ ।। नेमे ! मम मनो जज्ञे त्वय्यानन्दसुधामयम् । दृष्ट्वा कर्पूरपूरस्य मण्डनं पापखण्डनम् ।। ५ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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