Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४४
तिजयह-मउडु जिणिंद ! तुहु हं पुणु तुज्झवि मउडु । जिणि किउ कंतिच्छलि भणइ सुवि होसइ जइ मउडु ॥ ३ ॥ उभयट्ठियससि-सूर जिणकुंडलछलिण सहति । कणयाहरण विराइयह तुह सुरगिरि-कयभंति ॥ ४ ॥ किह जिण दीसइ कुंडलिहिं हीरावलि दिप्पंत । नं तुह धणमुत्तिहि सहइ विज्जुलडिय झलकंत ॥ ५ ॥ गीवाहरणु जिणिंद ! तुहु इउ केरिसु पडिहाइ । सिद्धि-पुरंधियबाहुलय कंठि निवेसिय नाइ ॥ ६ ॥ तुह जिण उरि उरमालडी नाणाविहरयणेहिं । नं गयणंगणि धणुहलय दीसइ भवियगणेहिं ।। ७ ॥ तुह कणयह संकल नियवि मूदु भणइ इउ लोउ । जइ पुनह संकल न इह त कि जिण एरिस भोउ ।। ८ ।। तुह जिण ! थुइहि जु अज्जियउ महु देयण सिवगेहु । पुनपिंडु विज्जउरमिसि पई करि धारिउ सु एहु ॥ ९ ॥ दुग्गइ मज्जिर तिहुयणह तुह भुयरक्ख पयंड । बाहुरक्ख इउ भूसणवि नामु धरहिं भुयदंड ॥ १० ।। गह नक्खत्तह मंडली तारायण संजुत्त । फुल्लमालमिसि नाह ! तुहु मेरुहु भमइ निरुत्त ॥ ११ ॥ तोरणु नाह ! सुवन्नु किर सिवनयरह पइसारि । पइं वंदंत सुणंति जण अम्हि संठिय भवपारि ॥ १२ ॥ मई लद्धा चिंतिय रयण-सूरिहि उग्गइ अज्जु । हूउ तुरंत जु मज्झु मणु नेमिहि वंदणु सज्जु ॥ १३ ॥
छ
(११) श्रीनेमिनाथ स्तव जय जय नेमि जिणिंद पहु पई पिक्खिवि नयणेहिं । हियड़इ रंगु सु कोइ भणि जु न सक्कं वयणेहिं ॥ १ ॥
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