Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४४
जंपणमणा वि जीहा उवमाणं नो लहइ तुह थुई काउं । आलालंबवसाओ चंदाइसु कीस धावेइ ॥ ३ ॥ सायर-चंद-दिवायर-चिंतामणि-कप्पपायवाईहिं। हीणेहिं अणंतेणं कह तेहिं पास ! तुह उवमा ॥ ४ ॥ देहं चिय भमइ बहिं जीयं मह पास ! तुम्ह पयमूले । अणमिसनयणेहिं अहं तित्तिं न लहामि पेच्छंतो ।। ५ ।। अप्प च्चिय मह सक्खी जयंमि नन्नो पिओ तुमाहितो । वम्मादेवि-समुब्भव ! नाणेण तुमंपि तं मुणसि ॥ ६ ॥ एगेगंमि वि अंगे सा का वि हु पास ! चंगिमा तुज्झ । जत्थ निविट्ठा दिट्ठी तत्तो बीए न संकमइ ॥ ७ ॥ अह सहसा सव्वंगे दिढे रहसेण एक्कहेलाए । तइया मह आणंदो मन्ने भुवणंमि न हु माइ ।। ८ ।। खुद्दोवद्दव-साइणि-विसहर-चोराइ दुरियनिग्घायं । सिरिपासनाह ! नामं चिंतियमेत्तं कुणइ सिग्धं ॥ ९ ॥ नवनीलुप्पलसामल ! नवहत्थुन्नय ! फणिंद कय सेव ! । सिरि पासनाह ! वासं भवदुहनासं लहुं देहि ॥ १० ॥ सिरि धम्मसूरि मुणिवइ सीसो सिरिरयणसिंहमुणिनाहो । फासिंतो धरणियलं तिक्खुत्तो नमइ सीसेणं ॥ ११ ॥ छ ।।
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(९) श्री पार्श्वनाथ स्तव
सिरिपास ! तिजयसुंदर ! दरमेत्तं पि हु दुहं महं गलियं । गलियासेसभवन्नव ! नवघणसम ! जं सि सच्चविओ ॥ १ ॥ चविओ नियभिप्पाओ पाओ न इओ हवेज्ज संसारे । सारे तुह जिणचरणे चरणंपि अहं तया पत्तो ॥ २ ॥ पत्तं नन्नं भवओ भवओ सरणे समत्थयं मन्ने । मन्नेसु तेण सिवरयवरयाणंदं पयं देव ! । ३ ।।
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